मेरा देश गणतंत्र दिवस की ओर अग्रसर है, भला हो मोदी जी का बच्चा बच्चा इसको इस साल सार्थक करेगा तिरंगे के साथ न की भगवा झंडे के साथ।

देश को धर्म से ऊंचा रखने से ही वैज्ञानिक सोच का आगमन होता है। जिस धर्म से अध्यात्म नहीं जन्म लेता वह धर्म अपने मूल स्वरूप को खो रहा होता है। यदि कोई भी धर्म हिंसा पर उतारू करे उसमे बदलाव की आवश्यकता समझी जानी चाहिए।

अगर मेरे देश की सरकार किसी एक धर्म की पैरोकार लगने लगे तो जनता को उठ खड़ा होना चाहिए।

यह जन तंत्र है। हमने देखा है धर्म के आधार पर बने सभी देशों में मौलीक अधिकारों का हनन आम बात है। स्त्री का दलित हो जाना आम बात है।

हाल के पूरे प्रकरण में देखिए कितनी अच्छी बात हुई। सुसप्त ज्वालामुखी धधका है

वे युवा जो सकूँ की ज़िन्दगियों में, वीडियो गेम में पड़े, ” व्हाट यार, चिल ब्रो लेट्स हव सम फन, इट्स हॉलिडे टुडे” किया करते थे वे जाग कर संविधान पर पहरा देने लगे हैं । मोदी जी का आभारी रहेगा भारत।

भारत का कोई और प्रधानमंत्री हमारे अंदर लग चुकी जंग एक झटके में नहीं छुड़ा पाया था आखिर।

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