
उदासी को चीर कर
उजास चेहरे पर गिरती है,
भोर की धूप झहर कर
सारा बदन घेरती है,
कैसे प्रीत की तीर सा
उतरा प्रकाश उर में,
ताज़गी से भर गया
पुष्प पुष्प उपवन में
◆प्रज्ञा मिश्र ‘पद्मजा’
२४-०२-२०२२
प्रकाश के प्रताप से होता है प्रभात
मेरी दादी माँ द्वारा समय की स्लेट पर लिखा वाक्य
झिलमिल पत्तों की ओट से
उठती हैं आशा की किरणें
वसंत का भोर से हो रहा
सुंदर संवाद जैसे सुनहरी बात
