हरे घास के मैदानों के साथ मनुष्यता ने जो सबसे अच्छा व्यवहार किया वह है उनके हृदय पर चम्पा के पेड़ लगाना और चम्पा के फूलों की प्रतीक्षा करना।
हरी दूब का पोषित मैदान और उसपर दौड़ते चम्पा के फूलों का दृश्य आकाशगंगाओं को भी मोहते हैं, विभावरी ईर्ष्या करती है, जो कभी अपने तारों भरी औंधी थाल पर इठलाती थी, धरती की हरियाई अंचरी पर बिखरे चम्पई दुलार को जब से देख लिया उसने तब से सोयी नहीं है वो, निहारती रहती है इस ममत्व के लिये जो टिमटिमाते तारों के बीच नहीं मिलता जिसका उल्लास बस धरती पे पसरे उजाले में है।
प्रज्ञा मिश्र
