बंद हो गयी घड़ी हाथ की
जब से देखा तुमको ,
कब आओगे ट्यूशन में तुम
और कब फिर देखूँ तुमको।

कितने तिकड़म मैंने लगाए
फिर सीट बगल में पायी
और तुम थे कि यस सर नो सर
चलता हूँ बाई बाई।

सर ने मुझसे कब क्या पूछा
याद नहीं अब मुझको
तुमने कब कब क्या क्या बोला
रटा हुआ सब मुझको।

चौड़ा माथा, रंग गेहुआँ
गालों का डिम्पल भाया
मुझे नशा सा हुआ तुम्हारा
फुर्सत में तुम्हे बनाया

मोंटेकार्लो की स्वेटर पहने
सपनों में देखा तुमको।
कुछ भी पहनो क्या जचते हो
मैं नींद में रखूँ खुद को।

Pragya Mishra

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