लड़खड़ाती नौ परसेंट की बैटरी
जब घंटे भर में चार्ज नहीं हुई
तब फ़ोन का पुर्ज़ा पुर्ज़ा खोल दिया
फिर तहज़ीब से जोड़ दिया
इकतीस परसेंट की जान आ गई
छिटपुट जमा बिखरी ऊर्जा
बारिश देखने के काम आ गई।
स्टील के जग और छोटी कप में
विंग की लॉबी तक चाय आ गयी।
चाय की चुस्की है बारिश है
है बच्चों का शोर गुल,
थोड़ा लीक से हटकर उनको भी
एक बजे की दुपहरी बारिश में
भींगने की आज़ादी दी गयी।
मन के ब्लॉक जगह पे आये
और मैं थोड़ा रीचार्ज हो गयी।
बारिशों में भीगता भोला बचपन और उसकी कौतूहल देखना दिमाग को स्पा में नहाने देने जैसा है, मन रीचार्ज हो जाता है ,जैसे हफ्ते भर में सारी ऊर्जा जो खींच ली गई थी बारिश में बैठ वापस आ रही हो, दिमागी हरयाली ,कोंपल विचारों वाली और पास खड़ा है दौड़ता , झूमता, नाचता , बेरवाह , अलमस्त पलछिन।
#प्रज्ञा 7 जुलाई 2018
रिचार्जिंग poem
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धन्यवाद
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