स्कूली जीवन ने सुने पढ़े सभी सरस्वती वंदनाओं को आज वसंत पंचमी के शुभ अवसर पर स्मरण कर रही हूँ। केंद्रीय विद्यालय की छात्रा होने के कारण ये सभी प्रार्थनाएँ मेरे जीवन का अभिन्न अंग हैं और मेरी आदत का हिस्सा हैं। हम इन्हें सुबह की प्रार्थना में, पंद्रह अगस्त, छब्बीस जनवरी या सरस्वती पूजन के दिन हमेशा गाया करते थे। इनपर नृत्य भी होता था। दीप्ति दीदी बहुत सुंदर नृत्य करती थी। कभी कभी वो सरस्वती भी बनती थीं, कभी भारत माता। एक बार प्रीति भी सरस्वती बनी थी। मैं , निवेदिता, बरखा, साधना, नीतू दीदी हम सब लाइन में खड़े होकर गाते थे। म्यूज़िक सर हारमोनियम बजाते और निशा मैम झाल बजाती थीं। हमारे बाद ये परंपरा और लोगों ने निभाई होगी और विद्यालय माँ की वंदना आज भी गाता होगा।

जब तक स्कूली जीवन मे रहे गायन और वादन हमारे दिनचर्या का हिस्सा था जिसमें माँ सरस्वती का वास होता है। आज माँ को उन्हीं प्रार्थनाओं के माध्यम से याद कर रही हूँ।

वसंत पंचमी एक ठंडी मीठी याद है, जिसमें शलगम , बेर का स्वाद है औऱ पीली साड़ी में सजी सुंदर लड़कियों की ठिठोली भी है जो समूह बनाकर बिहार की गलियों में सरस्वती पंडाल जा रही हैं। उनमें मैं भी हूँ लेकिन मैंने सलवार सूट पहन रखा है क्योंकि मैं अभी बच्ची हूँ। आज जब मुम्बई में हूँ मेरी अलमारी या किसी स्काईबैक में पीली साड़ी रखी है लेकिन मुझे बीते दृश्य को ओढ़ कर जीने से ज़्यादा उसे लिखकर जीना अच्छा लग रहा है।

सरस्वती पूजा बिहार के बाहर के राज्यों में मुख्यतया बंगाल का पर्व माना जाता है। बंगाली मित्र एकीकृत होकर पूरे उत्साह से साथ मनाने जुटते हैं। ये एकता ये उत्साह बिहारी में नहीं है , बिहारी ने अपनी संस्कृति सहेजने वालों का छीछालेदर कर दिया और बाहर के डीलडौल में टूट गए बिखर गए और एक दूसरे से जानपहचान भी नकारते रहे। लेकिन अब हालात बदल रहे हैं और बच्चे बिहारियों के फिर सीख सहेज रहे हैं अपनी मिट्टी की विरासत।

प्रार्थना/ वीणा वादिनी

वीणा वादिनी ज्ञान दायिनी
आये हैं तेरे द्वार
मधुर संगीत सुना दे
मधुर संगीत सुना दे

है जगदम्बे अम्बे
वीणा बजा दे
एक बार माँ
कोयल की तान आम्बे
जग में गुँजा दे
एक बार माँ

अमर ज्ञान दे
ज्योति प्रकाशिनि
तेरा ही आधार
मधुर संगीत सुना दे

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प्रर्थना/जयति जय जय माँ सरस्वती

जयति जय जय माँ सरस्वती
जयति वीणा धारिणी ॥

जयति पद्मा स्नेह माता
जयति शुभ वरदायिनी ॥
जगत का कल्याण करो माँ
तुम हो विघ्न विनाशिनी ॥

कमल आसन छोड़ दे माँ
देख मेरी दुर्दशा ॥
शांति की सरिता बहा दे
तू है शुभ वरदायनी माँ ॥

जयति जय जय माँ सरस्वती….

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सरस्वती वंदना

वर दे वीणावादिनी! वर दे।
प्रिय स्वतंत्र–रव अमृत–मंत्र नव,
भारत में भर दे।
काट अंध–उर के बंधन–स्तर,
बहा जननि ज्योतिर्मय निर्झर,
कलुष–भेद–तम हर, प्रकाश भर,
जगमग जग कर दे।

नव गति, नव लय, ताल छंद नव,
नवल कंठ, नव जलद मंद्र–रव,
नव नभ के नव विहग–वृंद को,
नव पर नव स्वर दे।

वर दे वीणावादिनी! वर दे।

~ सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, माँ सरस्वती के लिए की गई उनकी यह रचना कालजयी रचना है।

निराला की रचना

संस्कृत देव भूमि भारत में सरस्वती पूजा की महत्ता इसलिए भी रही है कि यहाँ मिट्टी के शरीर के माध्यम से ज्ञानार्जन को धनार्जन से ऊपर रखा गया। मोक्ष के आकांक्षी भारत के ऋषि मुनि जिन सूत्रों को रच कर गए थे वे आज भी मनुष्य को उसके मूल स्वरूप से परिचय करवाने में सक्षम हैं।

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ॐ असतो मा सद्गमय।
तमसो मा ज्योतिर्गमय।
मृत्योर्मामृतं गमय ॥
ॐ शान्ति शान्ति शान्तिः ॥ – बृहदारण्यकोपनिषद् 1.3.28।

अर्थ
मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो।
मुझे अन्धकार से प्रकाश की ओर ले चलो।
मुझे मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो॥
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मैं केंद्रीय विद्यालय से पढ़ी हूँ जहां किसी भी अवसर पर सरस्वती पूजा का इतना महत्त्व था कि क़ई वन्दनाएँ हिंदी और संस्कृत में मुझे आज भी याद हैं:

सरस्वती वंदना

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना॥
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।
सा माम् पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥1॥

शुक्लाम् ब्रह्मविचार सार परमाम् आद्यां जगद्व्यापिनीम्।
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्॥
हस्ते स्फटिकमालिकाम् विदधतीम् पद्मासने संस्थिताम्।
वन्दे ताम् परमेश्वरीम् भगवतीम् बुद्धिप्रदाम् शारदाम्॥2॥

जय माँ सरस्वती

माँ सरस्वती आप सब के और हमारे भी घर स्थिर लक्ष्मी
बनाएं रखें जिससे की हम सभी अच्छा खाएं, पहनें ओढ़े,
घूमें फिरे, स्वस्थ रहें, खुशहाल रहें, दान पुन करें , महंगी किताब भी खरीद पढ़ सकें, किताब दोस्तों में बांट सकें , ड्रॉइंग पेंटिंग कलरिंग के ख़र्चे भारी न पड़ें, गायन-नर्तन के शौक पर नौकरी की कटारी न पड़े।

देश देखें विदेश देखें अच्छा-अच्छा लिखें पढ़ें, नई सोच का संचार होवे, वसुधैव कुटुम्बकम में कुटुम पर प्यार बरसावे लेल बल बुद्धि दोनों बढ़े। सब की बुद्धि न्यारी जाए वारी जाए। बच्चे जिस कला में आगे बढ़ना चाहें माँ बाप को पाकिट नहीं देखना पड़े। माँ शारदे झोली भर-भर किरपा करें।

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