सात्विक, गौरव, संदीप नामों से सुसज्जित मेरे तीनों भाइयों को समर्पित एक कविता भाई दूज पर।

मेरे भाई

माँ बाप के लाड़ की रखते हैं सहेज कर धरोहर
मेरे भाई भविष्य के लिए लिखी चिट्ठी जैसे हैं
उनकी समझ में स्त्री-पुरूष सम्पूर्ण व्यक्तित्त्व हैं
मेरे भाई सदियों से सहेजी गयी प्रगति जैसे हैं
समय की सियाही से लिखे गए सुंदर स्वर्णिम
अक्षर वाले नामों में गूँथे मेरे प्यारे भाई
सत्त्वगुण, गुरुता सम्पन्न ,प्रकाशित दीपक जैसे हैं

प्रज्ञा मिश्र
०६-११-२०२१

मनोकामना

पढ़ें मैथिली कविता आदरणीय मणिकांत झा जी रचित।

भ्रातृद्वितीया गीत

औसरा बैसल छी यौ भैया
अहींक आबक असरा मे
एतेक देरी कोनाक’ केलिए
भरदुतिया के जतरा मे।

गायक गोबर आँगन निपलहुँ
पारल हम ओहिपर अरिपन
पान सुपारी मटकूरी मे
बाट जोही पल-पल क्षण क्षण
अँकुरी आनल लालकाकी सँ
कुम्हरक फूलो बखरा मे
एतेक देरी कोनाक’ केलिए
भरदुतिया के जतरा मे।

भाइ बहीनक स्नेहक पाबनि
कोना बिसरि गेलिए भैया
भउजी तँ ने मना केली है
दीतहुँ जे हमरा रुपैय्या
कहबनि हमरा किछु नहि चाही
संठती अपना नहिरा मे
एतेक देरी कोनाक’ केलिए
भरदुतिया के जतरा मे।

जमुना नोतलनि यम के जहिना
अहाँके नोतब हम ओहिना
और्दा अहाँक बढ़य तहिना
जेना जल गंगा कृष्णा
मणिकांत संग शीघ्रे चलि आबी
पड़ी नहि कोनो लफरा मे
एतेक देरी कोनाक’ केलिए
भरदुतिया के जतरा मे।

-मणिकांत झा, दरभंगा,६-११-२१

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