अंतर्मुखी और बहिर्मुखी
एक साथ होना भी
अजीब परेशानी है
कभी तो एक साँस में
भीड़ सम्भाल लेना
कभी खुद भीड़ में
कहीं खो जाना
जैसे नाते हैं न धाम
बस की खिड़की पे
केहुनी टिकाये
उँगलियाँ चलती रहती है
मानो सितार बजाया जा रहा हो
#प्रज्ञा
अंतर्मुखी और बहिर्मुखी
एक साथ होना भी
अजीब परेशानी है
कभी तो एक साँस में
भीड़ सम्भाल लेना
कभी खुद भीड़ में
कहीं खो जाना
जैसे नाते हैं न धाम
बस की खिड़की पे
केहुनी टिकाये
उँगलियाँ चलती रहती है
मानो सितार बजाया जा रहा हो
#प्रज्ञा
एक कवि के लिए सबसे सुंदर व्यक्तित्व है, अंतर्मुखी-बहिर्मुखता।
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बेहद अच्छा लगा आपने समझा
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