आजकल राजनैतिक बहस और कमेंट में गहमा गहमी बढ़ गयी है, अनुभव के अनुसार मैं यह कह सकती हूँ कि क़ई बार इतना खराब लग जाता होगा, बात आगे बढ़ कर दिमाग और दिल पर असर कर जाती होगी कि आस-पास के लोगों तक को झल्ला कर जवाब दे दें।
ऐसा होना स्वाभाविक ही है , हम इंसान हैं, मशीन नहीं हैं, हमारी भावनाएं हैं, कई बार भावनात्मक रूप से तथाकथित कूल होने या सब ठीक लगने का नाटक कर लें तो भी जो चुभी है अगर कोई बात तो जल्दी नहीं मिलती है निजात।
कभी कभी तो सोशल मीडिया पर बहस ऐसी बढ़ जाती है कि आए दिन तमाम पुलिस केस मार लड़ाई की खबरें भी पढ़ते हैं, यह कोई अनपढ़ तबका नहीं है महा पढ़े लिखे लोग भी ऐसी बेवकूफी कर जाते हैं, दिमाग पर नियंत्रण नहीं रहता, भावनाओं में बह निकलते हैं।
गाली तो अच्छे अच्छे को सनक में डाल देती है, साम्प्रदायिक बातों के कारण , या राजनैतिक पक्ष विपक्ष के माहौल में , या फेमिनिज़्म रिलेटेड, या पुरुषवाद रिलेटेड पोस्ट पर भी बहुत तनातनी छींटा कशी होकर बात कटुता और सम्बन्ध विच्छेद तक आ जाती है।
सभी के लिए एक बात हमेशा लागू रहेगी कि व्यक्ति के रूप में पक्ष और विपक्ष दोनों ही ज़रूरी लोग हैं, बेकार और गैरज़रूरी कोई नहीं , जो दुश्मन लगने लगें वो भी किसी के माँ बाप भाई बहन बेटे बेटी सगे सम्बन्धी मित्र आदि हैं तो “एकदम से छीछालेदर कर पूरा चुप क देंगे तुमको, हम कौन तुम कौन” वाली सोच किसी भी तरफ़ से स्वीकार्य नहीं होती। सम्मान जनक नोट पर बात को छोड़ना ही पढ़ा लिखा होने की निशानी है।
यदि आवेग फ़िर भी न थमे, दिमाग अधिक ही उलझा लगे ऐसी स्थिति में जिनसे न बने उन्हें अमित्र रखना, ब्लॉक रखना, बात न हावी होने देना, दूरी रखना, फ़ोन कम से कम देखना, कुछ दिन डिएक्टिवेट रखना, स्नूज़ रखना यह सब अच्छे उपचार हैं।
सबसे ऊपर , यह बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि सोशल मीडिया से बाहर भी सभी बहुत नेक अच्छे लोग हैं। हम सभी अपशब्द नहीं कहते फ़िरते। बच्चों से प्यार से मिलते हैं, मेहमान कोई भी हो हँस कर स्वागत करते हैं, अपने घर आने वाली काम वाली दीदी, धोबी वाला, किराने वाला, दूध वाला, फूल वाला, खाना बनाने वाली, बच्चा पालन में मदद करने वाली , सब्ज़ी फेरी वाले सबसे इज़्ज़त दे के मिलते हैं।
सोसायटी में या आस पास किसी को भी हम ज़रूरत पर मदद करते हैं। अपने बच्चों के भविष्य और अपने बुढ़ापे के लिए जी तोड़ मेहनत करते हैं,रिश्तेदारी निभाते हैं।
हम में से क़ई लोग ऐसे भी होंगे जो अपने घर आस-पड़ोस के आर्थिक रूप से कमज़ोर किसी की पढ़ाई की, किसी की शादी कराने की ज़िम्मेदारी लेते हैं। सभी अपने संस्थान में अहम हैं, सोशल मीडिया पर भले पॉपुलर न हो पर बहुत समाज सेवा करते हैं। दोस्ती दिल से निभाते हैं। हम सभी ऐसे लोग हैं जिनको चेहरे पर पड़ती खुली हवा से प्यार है। घूमने फिरने से प्यार है। हम नेक लोग हैं और यूँ ही किसी से लड़ नहीं सकते। इसलिए जब दिमाग खेलने लगे तो दिमाग को सामने रख कर हम उसे बताएंगे कि हम उससे बड़े हैं और वो हमारे वश में है।
पुरानी कहावत है कि अपना दिमाग वश में नहीं रखने से दिमाग व्यक्ति को नष्ट कर देता है।
अपने आप से “शांति” और अपनी गतिविधि में “सौहार्द” जीवन के दो ज़रूरी शब्द हैं।
गणतंत्र दिवस की अग्रिम शुभकामना।
२५-०१-२०२२
प्रज्ञा मिश्र