एक-अनेक, एक-अनेक
छोटी-छोटी बातों में बड़े सत्य का उदघाटन हो जाता है। मेज़ पर अंशुमन की ड्रॉइंग बुक पड़ी थी, अप्सरा की लेखनी/पेंसिल का प्रचार था, अनेक रंगों की लकड़ी में वही काला कॉर्बन बेचने की बात लिखी हुई। आकर्षक , मोहक, लोक लुभावन, अलग-अलग , जिसको जैसा रंग भाए वो आपनी पेंसिल उठाये, मन मर्जी का जामा चढ़ाने की बात। बच्चा भी खुश हो गया अभिभावक को एक नया शिगूफ़ा पकड़ा दिया।

यह पेंसिल स्वर्णिम अक्षर लिखे या स्याह सलेटी अक्षर ग्रेफाइट में कोई परिवर्तन नहीं होता, लेकिन इसका मूल्य इसके ऊपरी आवरण और रंग रोगन से और बढ़ ज़रूर जाता है। लेकिन अगर सुलेख के लिए गहरा काला अक्षर न उभर कर आया तो भी यह आकर्षक पैक दोबारा नहीं खरीदा जाएगा।
दो बातों का समन्वय है
- दुनियावी व्याहवारिक प्रगतिशीलता
- आध्यात्मिक सत्य
दुनियावी प्रैक्टिकल एप्रोच हमें सिखाता है कि हमेशा प्रेजेंटेबल रहो, यूनीक रहो , स्टैंड आउट करो, तुम्हारी यू एस पी बनाओ , अपना अलग रंग चढ़ाओ। यह भी अच्छा है, व्यवहारिक ज्ञान है, ऐसा करके हम में से बहुतों को बड़ी उड़ान मिली जिसके माध्यम से हम दूसरों का, अपना, अनेक संस्थानों का भला भी कर पाए, अर्थिक प्रगति बेहद ज़रूरी है।
वहीं इस चित्र का आध्यात्मिक पहलू भी बहुत गूढ़ है जिसमें एक-अनेक का सिद्धांत है। हमारे सारे रूपों में वही तत्व विद्यमान है, हम किसी भी दिशा में जाएं , हमारा मकसद एक ही है। हम किसी भी धारा के अनुयायी हों हम सभी एक ही प्रकृति से आये हैं। हमारा मकसद अपने कर्मो को लिखना है और हम सबको क्षमता एक ही जैसी मिली है यह हमारे ऊपर निर्भर करता है हम उससे क्या लिख कर जाते हैं।
सारांश – इस एक चित्र में तीन बिंदु उभर कर आते हैं
- हम ऊपरी रंग रोगन से क्षणिक आकर्षण उत्प्न्न कर सकते हैं भीतर पक्का तत्व नहीं भरा हो तो पैकेजिंग अकेले नाकाफ़ी है।
- भीतर के तत्व के साथ हमारी ऊपरी तैयारी रंग रोगन और प्रेजेंटेशन कितना मज़बूत है यह हमको मार्केटेबल बनाएगा
- रंग अलग अलग हैं लेकिन सब की आत्मा यानी ग्रेफाइट एक ही कार्बन तत्व का बना है
प्रज्ञा मिश्र
१८-१-२०२२

रंग-रूप वेश-भाषा चाहे अनेक हैं…
एक-अनेक, एक-अनेक…