क्या तुमने जो अर्जित किया है वो किसी दूसरे की ज़िन्दगी की कब्र खोद अर्जित किया है या यह वाकई तुम्हारी उपलब्धि है जिसमें किसी को पीड़ा नहीं हुई, किसी को कोई दंश नहीं पीना पड़ा ?
■■■
मैंने यह महसूस किया है, कई बार एक रचनाकार, लेखक या कलाकार रचना करने की ऊर्जा के क्रम में , या कला को साधने के क्रम में, कुछ और ही हो जाते हैं , फिर थोड़ी देर बाद आम आदमी के शरीर मे लौटते से उनकी सभी दुर्बलताएँ वापस आ जातीं हैं।
दुर्बलताएँ जैसे पैसे मांगने की लत होना, व्यसन करना, गाली गलौच करना, हाथ उठाना, अपने बच्चे न संभालना, जीवनसाथी/शादीशुदा जीवन को बोझ समझना, अचानक कहीं चले जाना, अपने इर्द गिर्द एक नया समाज बना लेना। सब वाह वाह कर रहे हैं , अचानक वे सबके लिए जिंदादिल हो रहे हैं, अचानक वे फिर गायब अपनी खोह में।
कोई ऐसा होता है जो उनका इतिहास जानता है की —यह लेखक /यह लेखिका , या गायक या गायिका या कलाकार …अंदर से कलुषित हैं, कुंठित हैं इसने अपने दिमाग की विकृतियाँ अपने से कमज़ोर पर कैसे उतारी।
कुछ लोग आप बीती बता देने की हिम्मत जुटा पाते हैं, कुछ लोग डर और इज़्ज़त के भय से आजीवन चुप रह कर दोबारा हिसाब चुकता करने वापिस आते हैं।
कुछ लोग ऐसे भी तो होते हैं जो ऐसे लोगों के साथ घुटते घुटते शोधरत हो जाते हैं, अलग रास्ता अपना कर प्रताड़ना देने वाले को माफ कर देते हैं और आज़ाद हो जाते हैं । वे लोग जो माफ़ क़र पाए, भयावह अनुभवों से,आज़ाद हो गए उनका भी बड़ा भव्य मनोविज्ञान था ।….
माफी देते हुए वे अपने दोषी में देख रहे थे एक बच्चा जिसके अभिभावक ने उसे इज़्ज़त न दी, घुड़कियाँ दीं, लात दी, बेदखल किआ , बेइज़्ज़त किया , वे देख रहे थे एक बच्चा जिसकी परवरिश का कोमलता से कोई लेना देना न था, वे देख रहे थे गरीब भारत में जिजीविषा रखता हालात से लड़ता एक बच्चा, सभी सुविधाओं प्रेम से वंचित, अंदर एक घुमड़ता आक्रोश अट्टहास में दबाए एक बच्चा जो अंत में कुंठित भी था और अपनी आनुवंशिकी में वही पुराना समाज लपेट कर अब वृद्ध हो गया था।
ये महज़ मनोविज्ञान है आपको लगेगा इसका व्यवहारिकता से क्या लेना देना फ़िर भी किसी अधेड़ का व्यवहार इन्ही कारकों से समझ आता हैं कि उसका बचपन कैसा था।
कुछ कलाकार वैसे ही होते हैं , जैसे सिएरा लियोन की खदानों से निकला ब्लड डायमण्ड, कितना कीमती और उतनी ही ज़्यादा माँग। लेकिन वहाँ के हीरे को बाज़ार तक जाने में कितना खून बहाया जाता है अनगिनत मासूमों। कितने दबाए और कुचल दिए जाते है। ग़ौरतलब है जैसे वो हीरा बिकना बंद नहीं होता वैसे ही ऐसे लेखकों, कलाकारों की कला या कृति बिकनी बंद नहीं होती । इट्ज़ बिज़नेस और अफ़सोस यह व्यवहारिक कहा जाता है।
प्रज्ञा मिश्र