धन्यवाद @weyosahitya

प्रज्ञा मिश्र की पँक्तियाँ

कभी अपनी लिखी या कही कोई बात हर किसी से जुड़ने लगे और हर किसी को अपने दिल की बात लगने लगे तो कितना अच्छा लगता है। पहले गूँज और अब weyosahitya पर इन पंक्तियों को प्रकाशित होते देख अच्छा लगा।

दो घटनाएं साझा करती हूँ।

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एक बार , एक कामकाजी महिला थी। वो बहुत होनहार थी। जब तक हो सका उसके माध्यम से उसके प्रोजेक्ट और कम्पनी को बड़ा फायदा हुआ और जब वो गर्भवती हुई तो उसे बधाईयां देते देते मज़ाक में सीनियरों द्वारा लाइब्लिटी बताया गया। कुछ दिन सहने के बाद दुःख और टूटन में उसने त्यागपत्र दे दिया इससे अधिक और हो भी क्या सकता था।
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दूसरी घटना कुछ ऐसी है कि एक बार किसी कम्पनी में टीम मीटिंग चल रही थी, अमरीका से भारतीय मूल के उच्च पदासीन मैनेजर टीम समीकरण की जानकारी ले रहे थे, वह कॉल स्पीकर पर थी। उनको दी गयी जानकरी के मुताबिक चार सदस्यीय टीम में कोई पुरूष इंटरव्यू में योग्य मिल नहीं पाया, चार लड़कियां ही हैं। महोदय कड़क स्वर में बोलें …"ऑल वुमन टीम इज़ अ रिस्क" और हँसने लगे। उन्होंने आगे पूछा, " क्या कहते हो तुम लोग?"....इस तरफ़ भारत से एक अधेड़ उम्र के पुरुष ने कहा: "नो नो सर, काफ़ी काबिल लड़कियां हैं, सारे प्रोड रिलीज़ अकेले हैंडल करती आयीं हैं क्या वीकेंड क्या नाइट" ।........अमरीका के भारतीय मूल का मैनेजर अचरज व्यक्त करता है "ओह इज़ इट" । .....फ़िर इस बात पर अपनी राय रखते हुए आगे कहता है - अरे यार अभी किसी की शादी हो जाएगी तो कहेंगी - "यहाँ ट्रांसफर दो" , 'प्रोजेक्ट बदल दो" या नहीं तो "शादी करनी है छुट्टी दो", "घूमने जाने का है छुट्टी दो", "फिर इन लोगों की प्रेग्नेंसी के अपने नाटक हैं" , "नो यार यू कीप सम मेल्स आल्सो इन द टीम। "......यह सब हँसी मज़ाक में ही तो चला था। साथ बैठी बलायें भी हँसी और पुरूष तो ख़ैर पुरूष ही हैं और हो भी क्या सकता था।

प्रज्ञा मिश्र ‘पद्मजा’
५-१-२०२२

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