तन मन सनाथ भी है
तन मन अनाथ भी है
स्मृतियाँ संवाददाता बनीं
अनुपस्थिति में तुम्हारे
अश्रुपूरित दृगों में
दुःख पुरातन कोरे कोरे
भेंट पावन स्वीकारो माँ
स्मृति वन्दन सारे हमारे
यह दिसम्बर प्राण घाती
यूँ अचानक याद आती
दौड़ कर आती जो मिलने
बच्चे अभी भी हम तुम्हारे
तुम वहाँ परधाम में पर
विश्वकर्मा सो रहे क्या
धरती तक भेजेंगे बोलो
स्वर्ग के सोपान सारे
कितना ऊपर बढ़ना होगा
कितने गहरे उतरना होगा
आप बनकर डाकिया मैं
जा लेने पाऊँ पत्र तुम्हारे
-प्रज्ञा मिश्र ‘पद्मजा’
स्वर्गीय श्रीमती चाँदप्रभा झा, मेरी दादी माँ की स्मृतियों को समर्पित, मेरा समस्त जीवन लेखन विद्या सोच सच आचार विचार व्यवहार सत्य निष्ठा मिथ्या कामना सब आपको समर्पित रहे, जब जब न याद करूँ तो कलम एक क्षण न चले , तपे ऐसे जैसे सूखा पत्ता गति पाता है धूप में। बहुत अधूरा है, बहुत अधूरी हूँ ,पाप की गठरी हूँ, कुछ पूछा नहीं, और तुम बताने की इच्छा लिए चली गयी।
मुंबई
२१/१२/२०२१
