AranyakOnNetflix

हमने कल अरण्यक वेबसिरीज़ देखी। यह एक सस्पेंस थ्रिलर है। ऎसी शानदार उठापटक वाली सीरीज़ हम लोगों को सपरिवार रोचक लगती रही हैं। कहानी बढ़ियाँ है। समय देने योग्य। फ़ैमिली के साथ ही देखी जानी चाहिए।

मज़बूत_पक्ष

कथानक मज़बूत है, सस्पेंस खुलने तक बाँध कर रखता है। साथ ही बहुत सारे ऐसे सामाजिक समसामयिक पहलू हैं जिन्हें यह फ़िल्म छूती है तो यह मात्र सस्पेंस थ्रिलर होकर नहीं रह जाती एक संदेश देने के साथ साथ बहुत सारी जड़ताओं पर और बदलते मानदंडों पर सोचने के लिए बाधित करती है।

हर किसी की एक्टिंग दमदार है। पात्रों का चयन भी सोच समझ कर किया गया है एक एक पात्र अपने आप में मुख्य कड़ी है जिसके बिना कहानी अगले चरण में नहीं बढ़ती। हर एक पात्र समाज में आते किसी बदलाव की तरफ़ या तो कुरूति की तरफ़ इशारा करते है ।रवीना टंडन को अपने फुल पोटेंनशियल में हम पहली बार देख पाते हैं।

समानांतर चलती कहानी से सीकुएल लाने के ऑप्शन भी खोल दिये गए हैं जो कि आजकल एक आम चलन भी है।

वेबातेंजोमुझेछू_गयीं

कस्तूरी अपनी बेटी को समझती है और बेटी भी माँ को उसके काम काज में आगे रहने में सहयोग देती है। बेटी की मानसिक उधेड़बुन को माँ और बाप मानवीयता से समझते हैं।

स्त्री और पुरुष का सम्बंध परस्पर होता है , मेल ईगो के दुखने से प्यार ख़त्म हो जाये तो इसमें सफल औरत की ग़लती नहीं होती।

ससुर और बहु एक दूसरे के काम काज के जज़्बे के लिए गुरु शिष्य नाते में अदभुत प्रेमिल मित्रता का उदाहरण देते हैं। यहाँ उनकी सारी ऊर्जा पुलिस जीवन के लिए उनकी दीवानगी उनके जुनून से आती है।

मोहोब्बत बस आदमी से नहीं अपने जुनून से भी होती है।

किसी पुरूष से एमपेथी रखना प्रेम हो जाना नहीं होता, सम्मान के तहत भी फिक्र होती है।

पति पत्नी के सम्बंधों और बच्चों के साथ निकटता पर हावी होते ऑनलाइन चैटिंग सम्बन्ध, असलियत से भागते और वर्चुअल जीवन में पनाह खोजते हारे हुए लोग दुखदाई हैं

कमज़ोर_पक्ष

अपराध का केंद्र मात्र यौन सम्बन्ध नहीं होते, यह बहुत पुराना विषय हो चुका है , इससे आगे सोचना चाहिये , लेखक शायद रिस्क नहीं लेते क्योंकि उन्हें लगता है ऐसा करना पॉपुलैरिटी कम करना होगा।

दरअसल राजनैतिक,व्यावसायिक लाभ और सत्ता लोलुपता में मानवीय भूल को कैसे प्रयोग किया जा सकता है इसको अधिक मुखर कर के दिखाया जाना चाहिए।

सारा सस्पेंस खुलने के बाद अंत में वेब्सिरिज़ सनिदेओल की बॉलीवुड फ़िल्म बन जाती है।

बहुत सारे पात्रों का कोई कंकलुसिव रियलिस्टिक एंड नहीं दिखाया गया है। भर भर के तंत्र का दुरुपयोग ऐसे दिखाया है जैसे छोटे शहरों में रिटायर्ड हवलदार तक क्लासिफाइड फाइलों को आसानी से हासिल कर सकते हैं।

कहीं कहीं पर रवीना टण्डन के चेहरे की कृत्रिमता भी साफ़ नज़र आती है।

भारतीय मानसिकता को भी हटा दें तो भी अंत निराशाजनक है। लगभग इसे कैसे खत्म करना है ये शायद समझ नहीं आ रहा था शायद लेखक को।

इन सब बातों के बावजूद ये एक नम्बर वेब्सिरिज़ है।छोड़ना नहीं है। देख लेना है। यह एक तरह से X files सीरीज़ से प्रेरित लग रही है।

प्रज्ञा मिश्र

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