प्रेम, साहित्य है या विशुद्ध ?
प्रेम को साहित्य ही रहने दो
क्योंकि प्रेम विशुद्ध नहीं होता
प्रेम तो इंद्रधनुष होता है
बड़े मिश्रित लक्षण हैं प्रेम के
जिस पर दिल खुन्नस खाये बैठा है
दिल को मिलना भी उसी से है
जाओ कुछ नहीं कहना तुमसे
और सब कहना भी तुम्ही से है
अबुझ पहेली है हरदम परेशान
साहित्य की तमाम विधाओं में
कविता है प्रेम
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प्रेम प्रेम हीं है।जो परिभाषा से परे है।
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