सपनों के आकाश में
एक सितारा मेरा भी था
सपनों के आकाश में
कतरा कतरा टूट कर आता
मेरी एक आवाज़ पे
प्यार में खुद को लुटा गया वो
मुझे फ़लक पे बिठा गया वो
धीरे धीरे झिलमिल झिलमिल
ओझल होता गया वो तिल तिल
पूरी होकर रही अधूरी
सपनों के आकाश में
प्रज्ञा मिश्र ‘पद्मजा’
२५-१०-२०२१
मुंबई
