तृतीयं चंद्रघण्टेति

आज दिन की शुरआत बच्चों को ड्राइंग कम्पिटीशन के लिए तैयार करने से हुई। अश्विनी मैडम और सोसायटी की कल्चरल समिति ने बहुत सुंदर आयोजन किया था।

अंशुमन ने दो लिविंग ऑब्जेक्ट में मम्मी और बाबू बतख बनाये , पानी बनाया, पेड़ बनाया और बादल। अभिज्ञान ने बहुत सुंदर सीनरी बनाने का प्रयास किया वह और अच्छा कर सकता था, उसे तीसरा स्थान प्राप्त हुआ। हमें उतना ही मिलता है जितने का हम अभ्यास रखते हैं भले ही हमारे अंदर हुनर अधिक का क्यो न हो।

मैं अभिज्ञान की चित्रकला से प्रसन्न हूँ। गति उपाध्याय की बहन की तरह वह भी दिल्ली विश्विद्यालय और बी एच यू से फाइन आर्ट में स्नातक करे, स्नातकोत्तर करे ऐसी सोच है। आगे वो जो चाहे।

नवरात्रि के दिनों के नियमित दिनचर्या में सुबह शाम पाठ किया। शतदल रेडियो के लिए दो पोड़कास्ट्स बनाये, पोडकास्ट कुकु एफ एम पर – हनुमान चालीसा, स्पॉटीफाई पर तंत्रोक्तम देविसूक्तम।

शाम पांच बजे मुकेश कुमार सिन्हा जी और अनुपम चितकारा के साथ ठाकुर कॉलेज के हिंदी असोसिएशन के कार्यक्रम में हिंदी साहित्य पर नई कविता के योगदान की बात में हिस्सा लिया। करीब 150 बच्चों ने हमें सुना। मुकेश जी की कविताएं बेमिसाल रहीं, पैथागोरस प्रमेय, एम्प्लोडीपीन वाली प्रेम रोग खास पसंद की गयी। उन्होंने अपनी बातों का अंत बड़ी नायाब पंक्तियो से किया –

” करीब जाने के लिए बहुत दूर तक यात्रा करनी पड़ती है”

अनुपम ने अपनी किन्डल यात्रा, साहित्य की जानकारी से किताब छपने तक का अनुभव साझा किया ।

सेशन में इप्सिता झा मेरी बहन भी थी, वह पूर्णियाँ से मुकेश जी, अनुपम और मुझे सुन रही थी, शायद उसने बीच में फ़ोन स्पीकर पर भी रखा हो, शायद हमारी आवाज़ें , पापा, मां , दादा जी ने भी सुनी हो, शायद फ़ोन से मैं आज शाम पाँच बजे पूर्णियाँ में भी रही हूँ।

मैंने तीन कविताओं का सस्वर पाठ किया – बाबा नागार्जुन की बादल को घिरते देखा है, निराला जी की बाँधो न नाँव, महादेवी वर्मा जी की बीन भी हूँ मैं तुम्हारी रागिनी भी हूँ। क्रेडिट्स एम ए हिंदी और कुमार विश्वास , इन गीतों का लय और पाठ करने का तरीका एक दिन में नहीं सीखा इन्हें गाने का अभ्यास मैं 2018 से कर रही हूँ।

नवरात्रि में नियमित लाइव पाठ करने का सोचा है आज कर पायी। शनिवार छुट्टी का दिन होता है। कल रविवार कर भी करूँगी। लेकिन अब पेज से पाठ करूँगी। शतदल रेडियो के पेज से।

ये भी सोचा है कि जो श्लोक मुझे याद नहीं हैं मैं उनको याद कर कर के रील बनाऊंगी।
मैंने ऐसे किया भी । कल कर्पूर गौरम पर रील बनाई तो दो ग़लतियाँ सुधार करने को समझ आयीं। मैं भवानी को भवामि कहती थी और विन्दे को वृन्दे।

कर्पूरगौरं करुणावतारं
संसारसारम् भुजगेन्द्रहारम् ।
सदावसन्तं हृदयारविन्दे
भवं भवानी सहितं नमामि ॥

आज एक नया श्लोक याद किया, फ़िर पाठ किया

तदेव लग्नं सुदिनं तदेव
ताराबलं चंद्रबलं तदेव ।
विद्याबलं दैवबलं
तदेव लक्ष्मीपते तेंघ्रियुगं स्मरामि।।

ते अंघृयुगम ऐसे पढ़ना है, ते अलग पढ़ना है।

पापा ने सुधार किया और बताया है –
संस्कृत में संधि का बहुत महत्व है।हिन्दी में जैसा लिखा होता है वैसा ही पढ़ते हैं।किंतु संस्कृत में शब्दों को विच्छेद कर के पढ़ते हैं तभी अर्थ बनता है।मन्त्रों में इसी सावधानी का अभाव अनर्थ कर देता है।अपेक्षित परिणाम नहीं प्राप्त होता है।

आज रंग स्लेटी था। कल नारंगी है। कल जो पोडकास्ट शतदल रेडियी पर लगाने वाली हूँ उसमें अखिलेश झा जी ने राम जी को कठघरे में रखा है।

इति।

9 Oct 2021

नवरात्रि2021-4

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