यह कविता बुआ जी और स्वर्गीय फूफा जी के शादी की सालगिरह पर लिखी थी… 15 अप्रैल 2021 कोविड के दूसरे प्रकोप में हमने फूफा जी को अचानक खो दिया था।
मैथीली में बुआ को पीसी कहते हैं, मैं पिसी सम्बोधन रखती हूँ।
पिसी ने इस साल अपनी शादी की सालगिरह पर बड़े अरमान से ये शब्द लिखे थे :
Kal hamara anniversary h ek achha sa kuchh likho hamare liye aisa kuchh ki bar bar padhu aur dil ko chhu jaye agar sambhv ho to
पिंकी पिसी के शब्द 28 जून 2021
यह कविता लिख कर 1 जुलाई को बुआ जी को भेज दी थी , जिसमें कुछ परिवर्तनों के साथ कविता को generic हाव भाव देने के लिए व्यक्तियों के नाम हटा कर प्रस्तुत कर रही हूँ। नहीं समझ सकती कि पढ़ कर वैधव्य की पीड़ा पर क्या असर हुआ हो, या कि यादों को ताज़ा कर अच्छा लगा हो, पर मेरी बुआ बहुत मज़बूत है ये बात तय है। कविता पढ़ कर पिंकी बुआ के ये शब्द थे
Bahut badhiya likhi ho bahut sundar
उम्मीद करती हूँ कविता में सम्प्रेषणीयता आयी हो।
एक मुक़म्मल दास्तान
एक राजकुमार था सलोना सा
एक राजकुमारी थी सलोनी सी
वो था छबीला शाही गुलफ़ाम
वो थी एक नूर में खिलती परियों सी
दोनों मिले तो ऐसे मिले
जैसे मिलता है बसंत चेरी के फूलों से
अपनी एक सुंदर दुनिया बसाई उन्होंने
मुक़म्मल दस्तान-ए-मोहोब्बत निभाई उन्होंने
“क्या तुम जानते हो हमारे रिश्ते को”
“हाँ कर के किसने दुलारा था”
“ये तो तुम्हारी आराम पसंद चाल ढाल थी”
“कि मेरी माँ को जमाई ज़्यादा प्यारा था”
“पाहुन ऊँचा सोचते है”
“बेटी को खुश रखेंगे”
“दोनो साथ साथ जीवन में”
“नित नयी उड़ान भरेंगे”
सुनो! हमारा साथ एक सफल उड़ान थी
हमारी लैंडिंग हर मोड़ पर शानदार रही
तुम्हारे साथ पूरी उम्र
हर पड़ाव पर जानदार रही
हमने महल बसाया सपनों का
दो फूल खिलाये प्यारे प्यारे
हँसता खेलता जीवन जिया
गाते रहे गीत कि हम हैं तुम्हारे
हमने साथ जीने का सलीका सीखा
सात रंगों को साथ देखा
दोनों ने एक दूसरे को
एक दूसरे की आदत बनते देखा
तुम्हारी पसंद नापसंद
मेरी ग्रोसरी की चेकलिस्ट हो गयी
मेरी पसंद नापसंद
तुम्हारे चिंतन की लिस्ट हो गयी
जीवन है तो परीक्षाएं आएंगी
ये क्या कि तुम यूँ टूट जाओगे
दुःख में सुख में साथ होना है हमें
मैं हूँ न , यकीनन तुम ये कर पाओगे
आधा हिस्सा बेटर हाफ वगैरह
वाली बातें हम कहां समझते हैं
पति और पत्नी अपनी पहचान
एक दूसरे के बिना अधूरी समझते है
याद करो हमारी सुदूर यात्राएं
लंम्बे रोमांचक रोड ट्रिप
उन यात्राओं से कहानियां बनाना
कहानियाँ बनाकर बच्चों को सुनाना
कितना कुछ है बताने को
फिर लौटकर याद शहर जाने को
खूब तसल्ली देती हूँ इन्हें
जब ये एल्बम खोजते हैं मालिकाने को
घर की शादियां देखी ,
तीज त्योहार निभाये
कभी मन से कभी बेमन से
तुम बस मेरे लिए आये
हमारा जीवन हमारे बाद ये जीवन
जीवन की सतही बातों में
थोड़ा थोड़ा कभी कभी
उलझ जाते हैं ।
जानते हो! हमसे ज़्यादा तो
देखने वाले समझ जाते हैं,
“ये जो सामने से आ रहे हैं न
सदियों से, जोड़े में आते हैं ।”
Pragya Mishra ‘पद्मजा’