थकन

कभी कभी जीवन में
बस समंदर किनारे
हवा पानी की बातें
सुनने का मन करता है।

न अपनी कोई बात
सुनाने का मन करता है
न तो किसी और को
सुनने का मन करता है।

शिथिल छोड़ देना
चाहती हूँ खुद को
सागर की लहरों के बीच,
नाव में हिंडोलों पर।

सरसराती लहरें मेरे भीतर से
वर्षों का कोलाहल पढ़ लेंगी
हरियाएगा मुरझाया मन,
और धूप धो देगी थकन।

  • प्रज्ञा मिश्र

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