मुन्नवर राणा जी अच्छे भले हुआ करते थे, जब से उनकी बेटी ने सियासी रंग लिया, उनके बयान अजीब हो गए, अब तो समझ नहीं आता सिर्फ पोलिटिकल गेन के लिए बोलते हैं कि सचमें वो ऐसे हैं। उनकी शायरी तो ख़ैर पढ़ना हमेशा से पसंद, पर उम्र की ढलान पर उनके जो कमैंट्स आ रहे कि तालिबान को उनका समर्थन है , वे आतंकी नहीं है , गुलामी से मुक्त कराया अफगानिस्तान को तो ये सब बड़ी दुखदाई बात है। क्या जाने किस ओर करवट लेगा समय लेकिन हिन्दुस्तान के अज़ीम शायर को इस तरह लोगों के मीम और हँसी का पात्र बनते देखना अच्छा भी नहीं।

ईश्वर से मेरी प्रार्थना है वो अपने वर्तमान में ऐसा इतिहास छोड़ कर जाएं कि भावी संतति उन्हें उनकी शाइरी लिए, नेक दिली और सादा जीवन उच्च विचार के लिए याद रखे, भोलेपन और उनकी माँ के लिए उनके प्यार के लिए याद रखे।

अब उनको सांसारिकता छोड़ कर पूरे तरह से अल्लाह के ध्यान भजन में लीन हो होकर मुसलमानों का जो वानप्रस्थ होता है वो पकड़ना चाहिये।

प्रज्ञा मिश्र

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