
प्रिय प्रज्ञा!
उम्र में ख़ुद से बड़े लेखक लेखिकाओं को अपने से श्रेष्ठ रचते हुए उतना प्रेम नहीं हुलसता जितना आप जैसे छोटी बहन और ग़ैर साहित्यिक दोस्त को सृजन करते देख कर… प्रज्ञा आपको शायद पता नहीं कि आप जैसे युवा ही साहित्य की उम्मीद हैं… बहनापा तो हमारा है ही… आपकी नेकी आपकी चेहरे की स्मित मुस्कान बिन कहे ही कह जाती है, हम दो साहित्यिक औरतें दुनिया को झूठ नहीं दे रहीं ये कितनी बड़ी तसल्ली है… बनी रहें हम दोनों की सच्चाई और ऊर्जा…!
और हां नदी सबसे मिलने नहीं जाती हम नदी जैसे लोगो से मिलने उनके दर तक जाते हैं… जल्द मिलने की उम्मीद में!
- गति