Company का identity card गत 16 मार्च 2020 से यूज़ ही नहीं किया था मैं उसे हमेशा कंपनी के लैपटॉप बैग में आगे की चेन में रखती ताकि बेमौका ज़रूरत पड़े तो अंधेरे में भी हाथ बढ़ा कर मिल जाये। यह बात बुआ जी से सीखी है, छोटे पापा उनकी तारीफ़ में ये लाइन अक्सर कहते थे।

पर मैं ठहरी दूसरे दर्जे की अक्लोदाय , गलती कर कर के सीखती हूँ। मतलब मार्च 2021 में दो दिनों की पूणे यात्रा के दौरान लैपटॉप बैग लेकर गयी थी और ID card मुंबई में घर पर कही ” बहुत सुरक्षित बहुत अच्छे से” रख दिया था। मार छान जब कही न मिला तो दीपका वाले मेसेज की सुध लेते आराम से सो गई।

कहते हैं कि हाथी गुम जाये तो पॉकिट में भी ढूंढना चाहिये, ये तो I card ही था पिद्दी बेचारा, पूरे घर ने कैसे ढूँढू कहां “अच्छे से रख दिया” !!

छोटी थी तो दादी एक टोटका करती थी कुछ तो संस्कृत का मन्त्र कही लिख के रख देने बोलती और चीज़ बाद में मिल जाती। पता नहीं कैसे।

सुबह उठी वॉक किया , नियम से विवेकानंद जी की जीवनी सुनी, कोई टेंशन नहीं भीतर एकदम शांत की जैसे कुछ हुआ ही नहीं है। लेकिन दिल का दूसरा हिस्सा कूद रहा था कि अबे लड़की कम्पनी ID खो गयी है तेरी, घुसने कैसे मिलेगा आफिस में, कितने चक्कर, क्या अप्रूवल, प्रूफ, पास, और FIR तक। पर सब दबा के दूसरे में “I reach, I reach” I have my I card , अरे हाथ मे ही है बस मेरे पास ही है, भी रट रही थी” ……कोई बगल में होता तो पागल ही कहता गनीमत है कि कोरोना है वाकिंग पर अकेली ही थी।

सुबह 9 बजे मैं मेरी दोस्त दीपिका का ” I reach” मंतर (जिसे positive affirmation भी कहते हैं) मार के सीधा कमरे में गयी स्टेशनरी कपबोर्ड के पास, अचानक सामने दिखा खादी ग्रामोद्योग से खरीदा मखमली हल्के बैंगनी ग्रेइश रंग का हैंड पर्स जो मेरा ही पुराना वॉलेट था। धकक से एक आशा के साथ पर्स खोली और ब्लू टैग के साथ मे प्यारी ID मिल गयी। आह कितने राहत की बात है, हेवी फाइन, FIR बहुत कुछ बच गया। बाई गॉड की कसम मुझे दूर दूर याद नहीं था कि मैंने उसमे रख दी है।

अब 28 मई की सुबह निश्चिंत होकर आफिस का काम निपटाया और कंपनी ID , आधार, पैनकार्ड लेकर 2 बजे चल दिए अंधेरी वाले ऑफिस jabbed यानी वैक्सीनेट होने के लीए….. अहा! साल भर बाद…. शानदार बरगद के पेड़ों वाला ऑफिस… मेरा फेवरिट ऑफिस …

क्रमशः

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