महिलाएं सिर्फ शक्ल
और ज़िस्म से ही खूबसूरत नहीं होती,,
बल्कि वो इसलिए भी खूबसूरत होती हैं,।
क्योंकि प्यार में ठुकराने के बाद भी …
किसी लड़के पर तेजाब नहीं फेंकती !
उनकी वज़ह से कोई लड़का
दहेज़ में प्रताड़ित हो कर फांसी नहीं लगाता !
वो इसलिए भी खूबरसूरत होती हैं,,
कि उनकी वजह से किसी लड़के को
रास्ता नही बदलना पड़ता!
वो राह चलते लड़को पर
अभद्र टिप्पड़ियां नही करती!
वो इसलिए भी खूबसूरत होती हैं,, कि देर से घर आने वाले पति पर
शक नही करती,,
बल्कि फ़िक्र करती है!
वो छोटी छोटी बातों पर
गुस्सा नही होती,
सामान नही पटकती,
हाथ नही उठाती,
बल्कि पार्टनर को समझाने की,
भरपूर कोशिश करती हैं !
वो जुर्म सह कर भी
रिश्ते इसलिए निभा जाती हैं,,
क्योंकि वो अपने बूढ़े माँ बाप का
दिल नही तोड़ना चाहती !
वो हालात से समझौता
इसलिए भी कर जाती हैं,
क्योंकि उन्हें अपने बच्चों के
उज्ज्वल भविष्य की फ़िक्र होती है !
वो रिश्तों में जीना चाहती हैं !
रिश्ते निभाना चाहती हैं !
रिश्तों को अपनाना चाहती हैं! Bhi
दिलों को जीतना चाहती हैं !
प्यार पाना चाहती हैं !
प्यार देना चाहती हैं !.
हमसफ़र, हमकदम बनाना चाहती हैं।💐सभी खूसूरत महिलाओं को महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं,💐💐💐

ये कविता मैने भी पढ़ी। सोशल मीडिया में बहुत वायरल है यह पोएम, लेडीज़ ग्रुप में खासकर। पर यह कुछ ज़्यादा ही अच्छी इमेज है। जबकी हक़ीक़त में आंकड़े इतने सीधे नहीं। एक छत्र राज वाली एक कविता जो हमने हाल में गूँज के पटल पर पढ़ी वह सच्चाई अधिक छूती है। स्त्री लोकतंत्र को सबसे कम झेल पाती है, यदि कुछ न समझ आ रहा हो तो मेरी मर्ज़ी कर के चिढ़ जाएंगी। सेक्स और संस्कारी जैसे विषय का हउआ पहले उनके माता पिता उनके अवचेतन में भरेंगे फिर वे अपने पूरे वैवाहिक जीवन में। पढ़ाई लिखाई का दिमाग को खोलने के लिए उपयोग करने के बजाय केवल हाईटेक बिचिंग करने में कर लेंगी। पति या प्रेमी के लिए इतना कठोर मानसिक ट्रैफिक रखेंगी कि आत्म विश्वास खो दें। शिजोफ्रेनिया से गुज़र रही औरतें मानेंगी ही नहीं कि उन्हें कुछ समस्या भी है। अवसरवाद में स्त्रैण गुणों का उपयोग भरपूर है। विवाहेतर सम्बंधों में कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेनी, न तो इस बात की कि यदि आपके पति और आप नहीं जुड़ पाए तो आखिर आपके हिस्से से क्या किया जाना था जो नहीं किया गया और अगर आप विवाहेतर सम्बंध में पड़ीं तो कितना सोचा आपने सामने वाली स्त्री के बारे में। यह पूरा मसला औरत को एक सांचे फिट कर के देखने का है।

यह सच है औरतें कोमल हैं, बसंत हैं, सब सच है, लेकिन बहुत कम आज़ाद सोच की औरतें हैं जो इस सच को स्वीकार कर रही हैं कि कितना कर्मकांड भर रखा है औरतों ने भी जो खुद औरतों की मानसिक स्वतंत्रता में बाधक है। यह एकदम से जेनरलाइज़ नहीं किया है मैने जिस तरह के उदाहरण गाँव मे या महानगर में देखे हैं उनसे उपजे अनुभव को रखा है। हर तरह की औरतें हैं।

प्रज्ञा मिश्र