ऊगली गयी आप बहती लार नहीं है कविता,
स्वेद भी नहीं है
समिधा है कविता
जिससे समाज में हवन होगा,
परिवर्तन होगा,
युगों युगों में ध्यानस्थ कोई प्रबुद्ध पलटेगा पन्ने,
युगधारा लिखनी है उसे,
यह भी कार्यभार दिया किसी तुलसी को,
प्रहरी नहीं राम इस बार,
कलम उठानी होगी,
प्रत्यंचा चढ़ानी होगी
भीड़ के लिए वात्स्यायन लिखते नहीं कविता।

सुन्दर रचना
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बहुत सुंदर
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वाह 👌👌
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