योग कर्मसु कौशलम’
योग का अर्थ है अपने कर्म में कुशल होना । जो अपने कार्य में कुशल हैं वे ही योगी कहलाते हैं। एक योगी व्यक्ति के वाणी और कर्म दोनों में कुशलता होती है। योगी व्यक्ति सहजता से शांत और स्थिर चित्त हो जाते हैं और पूरी ऊर्जा और गतिशीलता के साथ उद्यम करते हैं।
योग साधना आत्मोतथान और उच्च ऊर्जा अवस्था के साथ हमारी उपलब्धियों एवं कार्य क्षेत्र में कुशलता का मार्ग प्रशस्त करती है।
‘Yogah Karmasu Kaushalam’
Yoga is skill in action
A Yogi is also one who is skillful; who has skill in speech and in action. Who knows the skill to retire and be quiet and the skill to be in activity with dynamism. The skill to keep the spirit uplifted, energy high and yet get the achievement / job done .
योग्य जन जीता है
पश्चिम की उक्ति नहीं
यह सर्वथा अनुचित होगा गीता है गीता है
– निराला
श्री श्री योगा के चार दिन के कार्यक्रम में मिले ज्ञान बिंदुओं में हाथी और सांप के साथ कैसे आचरण किया जाए का उदाहरण अच्छा लगा।
गुरुदेव कहते हैं कि जीवन में हर व्यक्ति के साथ एक जैसा व्यवहार रख के सफल नहीं हो सकते। कोई ज़िद्दी है तो उसके सामने हम हाथ खड़े कर देते हैं कि बाप रे इसे समझाना मेरे बस की बात नहीं। ऐसे व्यक्तियों से बात चीत करने के लिए अलग रूख़ अख़्तियार करना पड़ता है।
पर ये शठे शाठयम समाचरेत से थोड़ा भिन्न ज्ञान है।
गुरुदेव कहते हैं कि प्रकृति को देखो और इससे सीखो। यदि हाथी तुमहारे पीछे पड़ा है और तुम उसके सामने एक सीधी रेखा में भाग रहे हो तो तुमसे कहीं तेज़ हाथी तुम पर चट झपट लेगा। इसलिए हाथी से बचने के लिए टेढ़ा मेढ़ा (zig zag) आकृति में भागना चाहिये क्योंकि हाथी को दिशा बदलने में देर होगी और जान बचाने के लिए अच्छी दूरी तय करना आसान हो जाएगा।
वहीं अगर हमारे पीछे सांप पड़ा है तो टेढ़ा मेढ़ा भागने से काम नहीं बनेगा क्योंकि साँप की खुद की चाल zig zag आकृति में है और बहुत तेज़ गति में हम लपेटे जाएंगे। इसलिये साँप से बचने के लिए सीधा सरपट दौड़ जाना बुद्धिमानी है।
ठीक वैसे ही यदि गाड़ी के आगे गाय बैठी है तो हॉर्न देने से उठ जाती है, परन्तु वहीं भैंस आ जाये तो उसे उतर कर धक्का देकर हटाना पड़ेगा।
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इसी प्रकार जीवन में अलग अलग लोगों के प्रति अलग आचरण अपनाना पड़ता है। लोकोक्ति में इस तथ्य को “जैसा देस वैसा भेस” के तरह भी हम सुनते आए हैं। यह उक्ति यूँ तो स्थान वेशभूषा खानपान आदि से रूढ़ि होकर बोली जाती है परन्तु देखा जाए तो व्यक्ति सम्पर्क के संदर्भ में भी सही ही मानी जायेगी।
यदि मौके और व्यक्ति के अनुसार ढल कर चलने वाले लोगों को भी हम अवसरवादी या नकारात्मक सन्दर्भ में चतुर चालाक कहें तो यह सर्वथा अनुचित होगा क्योंकि समय की मांग और किसी अन्य व्यक्ति के अनुसार आचरण कर पाना विशुद्ध मनोविज्ञान है और यह कुशलता स्थिर चित्त से बनानी पड़ती है।
आज मोबाइल युग में औसतन हर व्यक्ति एक एप्लिकेशन पर एक समय मे अलग आयुवर्ग , धर्म, पंथ, राजनीतिक विचारधारा, कार्य क्षेत्र , स्वभाव के पचासों लोगों को जवाब देता है। ऐसे में मनोवैज्ञानिक नियंत्रण न होने से चिडचिडापन और अवसाद की अवस्था का प्रेवेश हो जाता है मानव शरीर में और हमको समझ भी नहीं आता कि क्या कमी है क्या खल रहा है।
लेकिन उत्तर जीविता (survival) के नियम के मुताबिक कई लोग अपने शरीर , मस्तिष्क की क्षमता नए चलन के मुताबिक बढ़ाते हैं उसके लिए , योग, ध्यान क्रिया इत्यादि करते हैं तो कुछ प्राकृतिक रूप से भी बढ़ती है।
कुल मिला कर तैयारी ज़रूरी है। जीवन में टेक्नोलॉजिकल समागम को रोकना सम्भव नहीं तो मन और शरीर को सशक्त बनाने और जीत हासिल करने की तैयारी ज़रूरी है।
इसी तैयारी के लिए मैंने आर्ट ऑफ लिविंग से जुड़ना उचित समझा है। उम्मीद है जो मेरा ब्लॉग पढ़ रहे वे भी किसी न किसी लाइफ स्टाइल बेटरमेंट को फॉलो करने के प्रति सजग होंगे। आप कॉमेंट में अपनी तैयारी के बारे में ज़रूर बताएं।
महर्षि पतंजलि कहते हैं
‘योगा चित्त वृत्ति निरोध:’
योग चित्त की चंचलता को वश में करता है।
हमारे मन में 5 वृत्ति या संशोधन होते हैं
1. प्रमना – मन हमेशा प्रमाण मांग रहा है
2. विपरीया – गलत ज्ञान / समझ
3. विकल्प – कल्पना
4. स्मृति – अतीत के छापों की स्मृति
5. निद्र – निद्रा
पूरे दिन में, हमारा दिमाग इन पाँच अवस्थाओं में से किसी एक में रहता है। योग वह क्षण है जब हम चीजों को वैसे ही देखते हैं जैसी वो हैं इस समय हम सो नहीं रहे होते,
पुरानी चीजों को याद नहीं करते, कल्पना या प्रमाण की तलाश नहीं करते।
उस क्षण, हम अपने अंत: से मिल रहे होते हैं, जो आनंद, प्रेम,शांति और ज्ञान का स्रोत है।
Knowledge point from today’s sessions:
Maharishi Patanjali, who is considered the father of yoga says
‘Yogah Chittah Vritti Nirodha’
Yoga is retraining the modulations in the mind
Our mind has 5 vrittis or modulations
1. Pramaana – Mind is always seeking proof
2. Viparyaya – Wrong knowledge/understanding
3. Vikalpa – Imagination
4. Smriti – Memory of past impressions
5. Nidra – Sleep
All through the day, our mind is in one of these modulations. But, if there are those moments when we are not sleeping,
not remembering old things, not imagining or looking for proof and seeing things the way they are then that moment yoga has happened.
At that moment, we are reposing in our Self, which is the source of joy, the source of love, the source of peace and knowledge.
बढ़िया पोस्ट🌿🌿
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धन्यवाद 😊
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