आज गूँज समूह के संचालक कवि साहित्यकार मुकेश कुमार सिन्हा जी ने मेरी चार कविताएँ गूँज समूह में लगायीं, जिसपर समूह के सभी सदस्यों ने भावपूर्ण टिपन्नियां रखीं । चार छोटी कविताएँ नीचे में ब्लॉक्स में प्रस्तुत हैं। ये कविताएँ इन्नर और काव्यांकुर साझा सँग्रह में प्रकाशित हो चुकी हैं।

1️⃣ महुरत

न चार दीवारी टूटती है,
न बेगारी की चौखट छूटती है,
मौन कब तक बेचैन बंधे रहे शब्द
किताब की सेज पर बिछने को!
महुरत की देह पर लोहे की सील है,
न कैंची से कटती है ,
न हथोड़े से चटकती है,
लिखने सोचने वाली औरतें
घरों दफ़्तरों में खटकती हैं।


2️⃣ शोहरत

कितना खोखला हो गया मन,
खड़े होने की जगह ढूँढते-ढूँढते,
उठना था ज़मीन से ऊपर तो
उसके हिस्से की धूप लेली
और इसके हिस्से का पानी
बहुत चालाकी से सँवारी
अमरबेल ने सदाबहार जवानी!
ऐसी हरियाली को शोहरत कहते हैं।


3️⃣ इश्क़-विश्क

तकनीक से कहो
एडवांस हो लें
बेलगाम दिलों को
बेबाक मोबाईलों से
बाहर आने का मन करता है।
कहाँ तो किताबें लौटाने आये थे
और तुम धड़कनें साथ ले गए
मैं रह गयी यहीं।
कैसे देखोगे तुम मुझे
इन शहरों में छत होती नहीं।

अजीब अहसासात हैं
तुम सामने हो तो
बात ऐसे निकलती है
जैसे उंगलियों में घूमते बाल
वहीं के वहीं ।


4️⃣ प्रेम पत्र

कैसे भेजते हैं शब्दों में खुद को ,
बता दो,
अभी चिट्ठी लिखूंगी,
लाल स्याही से ,
हौले-हौले अक्षर उकेरे जाएंगे ,
जैसे सहला रहे हों गाल,
मोती जैसे गोल मटोल क ख ग घ ,
तुम्हरी बड़ी-बड़ी आंखों से पढ़ा जाएगा,
ज़रा चश्मा मोड़ कर बगल की मेज़ पर ,
फिर आगे की कहानी लिखूंगी
कि क्या कुछ चाल चल रहा है
मन बदमाशियों के ,
हो कर लिफाफा बन्द।

🖊️ *प्रज्ञा मिश्र*


कुछ बेहतरीन कॉमेंट्स जिनको मैं सहेज लेना चाहती हूँ ह को ब्लॉग में लिख के रही किसी पड़ाव पर मेरे बच्चे यदि पढ़ें तो छोटी छोटी खुशियाँ सहेजने वाली उनकी मम्मी की कविताओं के बारे पढ़ कर अच्छा महसूस करें:


पिता तुल्य अनिल कुमार सिंह जी आजकल आकाशवाणी श्रीनगर में हैं हाल ही में मुकेश सिन्हा द्वारा संपादित कारवाँ साझा सँग्रह में उनकी भी कविताएँ आयीं हैं। आपसे मुझे “बेटा” , “बच्चे” सुनने का आनंद प्राप्त है। अनिल अंकल लिखते हैं:

महुरत.. लिखने वाली औरतों के संबंध में कसमसाहट की अभिव्यक्ति कम शब्दों में सुंदर प्रस्तुति दूसरी
रचना शोहरत व्यंग्य है उन लोगों पर जो पराश्रित रहते हैं और अपनी उपलब्धियां दूसरों के सहारे पाकर शोहरत की बुलंदी पर पहुंचते हैं
तीसरी रचना इश्क विश्क कैसे देखोगे तुम इन शहरों में छत नहीं होती बहुत ही सुंदर, ऊंची ऊंची इमारतों के कारण और छत नहीं बालकनी होती है, छोटी और मधुर रचना
प्रेम पत्र चौथी रचना भी मधुर है
प्रज्ञा की रचनाएँ विविध विषयों पर छोटी किंतु प्रभावित करने वाली हैं
बहुत बहुत शुभकामनाएं और आशीर्वाद बच्चे 👏👏👏


सदाबहार तेजराज गहलोत जी लिखते हैं :

Prem patra ..ishq vishq ..mahurat .. teeno rachnaaye behatreen he …soharat bhi achi lagi …choti kavitaayein magar majbooti se apni baat kahti rachnaayein ..


आदरणीय वरिष्ठ साहित्यकार ज्योति खरे जी जिनके फेसबुक पेज ब्लैक बोर्ड पर मेरी कविताएँ प्रकाशित हुईं थीं 8 मई 2019 को और अचानक मुझे एक प्लेटफॉर्म से मिलता हुआ प्रतीत हुआ जहां लोग मेरा लिखा पसंद कर रहे थे। यह शुरुआती सफलता थी और मार्च 2019 में गूँज से जुड़ने के बाद ब्लैक बोर्ड से सफर शुरू हुआ था। ज्योति खरे जी जो उनकी टिप्पणी के लिए धन्यवाद ज्ञापित किया:

छोटी रचनाओं में अपनी गहन अनुभूतियों को भावपूर्ण औऱ प्रभावी ढंग से साधकर लिखा गया है.
सभी अच्छी कविताएं हैं.
बधाई 💐


आकांक्षा बरनवाल ने सुकून मिलने की बात कही तो सफल होने सी तरंग उठी

कम शब्दों में उत्कृष्ट अभिव्यक्ति।
सहृदय बधाई और ढेर सारी शुभकामनाएं।पढ़कर कर काफी सुकून मिला🌷🌷


शिव कह गए की:

राहत इंदौरी कहते हैं कि जिस दिन मेरा कोई समझ नहीं आया तो यह सोच कर ताली बजा देना कि शायर ने कोई बहुत बड़ी बात कह दी।


अनुपम शानदार कवयित्री हैं और मेरी आत्मानुभूतियों वाली बहन , मुझे याद से अपनी साहित्यिक यात्रा में शामिल रखसती है कि ऐसे लिख, ये पढ़, चल यहाँ छपने दे, वगैरह करती हुई हमेशा मुझे पॉज़िटिव करती है। आज ना वो अलग ही बौराई है इब्नबतूती बनी फिर रही रिव्यु दिया किताब का तो उसके पसंदीदा लेखक की कॉल आयी वादा मुताबिक जल्द रिव्यू देने वाले पाठक को कॉल किया धन्यवाद दिया उन्होंने। प्रिय बहन तुमने मेरे लिये इत्ता सारा लिखा थेँक्यू:

आज की कविताओं पर कुछ लिखने से पहले धन्यवाद मुकेश जी, आज हमारी सखी की कविताएं लगायी आपने।
पहली कविता, totally relatable, स्वछंद लिखने वाली स्त्रियों को कुछ अलग ही माना जाता है, जैसे कुछ गड़बड़ है उनके साथ। फिरभी तुम जैसे लिखती हो वैसे ही लिखती रहना।

दूसरी कविता अमरबेल का स्वार्थ दिखाती है, कितनी आसानी से पनप जाती है, दूसरे के हिस्से के पोषित होने के अधिकार लेकर । ज़्यादातर रिश्ते ऐसे ही होते है, अपने दम से ज़्यादा अपनों के त्याग से सिंचित और सब भूल चुके।

तीसरी कविता, डिजिटल इश्क़😍 पढ़ने में मज़ा आया। किताबों के बहाने ना सही facetime पर मिलो। पर हाँ पुराने तरीके के इज़हार इक़रार सब छीन लिए मोबाइल ने।

प्रेम पत्र☺️,मस्त लगती है पढ़ने में। तुमको कहते सुना है तो इसलिये इसका emotion सही समझ आता

तुम्हारी सारी रचनाएं आकार में छोटी और भावों में सक्षम है। लिखती रहो शेरनी। 😍


मुजेश सिन्हा जी जिनकी लाल फ्रॉक वाली लड़की का लप्रेक पाठ मैंने कुकू एफ एम पर किया था उनकी प्यारी सी टिप्पणी जो मुझे कवि कहते हुए समाप्त होती है

सामान्यतः प्रज्ञा पूरे पेज की कविता भी रचती है, पर इस बार उसने चार छोटी कविताओं को रखा है। कुछ प्रेम कुछ स्त्री से जुड़ी बातों को बेहद सलीके से परोसा गया है। प्रेम का गुलाबीपन और स्त्री पीड़ा दोनो बातों से जुड़ी अलग अलग कविता पाठक को जोड़े रखने में सफल है, बल्कि लप्रेक वाला असर दे रही है। अर्थात अपूर्ण तो नहीं कहेंगे पर विस्तार देना संभव था।

शुभकामनाएँ कवि

धन्यवाद गूँज

प्रज्ञा

6 अगस्त 2020

मुंबई

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