किसी बात को लिख देने का ख़्याल आने के बाद टाल मटोल कर छोड़ देने से बात रह जाती है। चाहे बात बच्चों के खिलौनों की हो या संस्मरण साझा करने की । एक ही वाकया लिख दें तो कहानी पर ख़त्म हो जाती है बात। कथानक और उपकथानक की व्याख्या करिएगा तो उपन्यास बन जाती है बात। बहरहाल यहाँ न कोई कहानी है, न लिखनी है उपन्यास। मुझे तो बस सोना है और सोने से पहले “यहाँ कुछ लिखें” जो रात नौ बजे शुरू किया था, समाप्त न करूँ तो करवटों में रात निकल जाएगी।
औरतों के साथ बड़ा अड़ंगा है,एक पंक्ति लिखने के बाद मशीन में कपड़े लगाएंगी, दूसरी लिखने के बाद उफ़नती दूध फूकेंगी , तीसरी के बाद बच्चों को कूटपीट के पढ़ने बैठा देंगी। पैरा पूरा हो गया हो तो डायरी बन्द कर के बर्तन धोने चल देंगी नहीं तो डिनर लंच में ही लग जाएंगी। मजाल है जो एक मुश्त समय निकाल लाएं।
चौबीस घँटों में थोड़ा स्पेस क्रिएट करने के लिए, लोकडाऊन में घर के छोटे मोटे काम बच्चों से भी करवा रही, जैसे धुले सूखे बतर्न स्टैंड में लगाना, कपड़े घड़ी करना, खिलौने समेटना। अभिज्ञान को देख अंशुमन भी इसमें लगने लगे हैं। ऐसा करने से बच्चों की ऊर्जा थोड़ी बहुत अच्छी जगह खर्च होती है औऱ उनको अलग से लाइफ स्किल की किताबें भी नहीं पकड़ानी पड़ेंगी ऐसे ही सीखते रहेंगे।
एक शाम में खिलोने समेटने कहा तो बच्चों ने एक छोटा डब्बा नुमा कार्टन निकाल के उसमें सारा कुछ भर दिया। छोटे बच्चे सबसे अच्छा रिसाइकिल करना जानते हैं। किसी भी टूटे फूटे खिलोने से दिल जान से खेलते रहते हैं और कोई भी डब्बा नूमा चीज़ उनकी प्रिय कंटेनर बन जाती है। तस्वीर में जो छोटी सी कार्टन है इसमें जेंगा के ब्लॉक्स हैं, हाथी घोड़ा चीता, लीगो ब्लॉक्स और वे तमाम खिलोने हैं जो छोटे टुकड़े हुए पड़े न जोड़े जाते हैं न छोड़े जाते हैं। कहाँ तो यह डब्बा मैं फेंकने वाली थी, कहाँ बच्चों ने इसे ज़रूरी का सामान समेटने वाली एक खास चीज़ बना ली।
इस कार्टन का हमारे घर आने का सफर शुरू होता है बोरिवली कोरा केंद्र में लगे खादी ग्राम उद्योग के मेले से। हर साल दीपावली के शुभ अवसर पे लगता है। हम अक्सर जाते और जिन जिन बातों पर आलोक की मुहर लगती हम उनको ज़रूर आज़माते। इनकी नज़र पारखी है।अंशु मोनू के पापा हर साल खादी वाले मेले से थोक भाव में बड़ी बेहतरीन मिक्स ड्राई फ्रूट वेराइटी लाते । यह मेरी ऑफिस टेबल स्नेक्स की तरह यह बहुत चलता , बच्चे भी ड्राई कीवी, अंजीर, आलूबुखारा, ब्लू बेरी, रेड बेरी इत्यादि पसंद करते। बाबू जी को कुशहर जाते समय किशमिश बादाम की पैकेट दे दी जाती , बाबू जी को किशमिश(मुनक्का) बहुत पसंद है। किफ़ायत जीने वाला आदमी एक स्टाल पर ड्राई फ्रूट की खरीदी खुले हाथ से खर्च कर जाए तो भई कुछ तो बात होगी।मेवा स्टॉल पर सभी कश्मीरी बंधू थे और वहीं से स्टॉल दर स्टॉल घूम घूम कारोबार करते थे।काजू बादाम अन्य मिक्स ड्राईफ्रूट का व्यापार इन कश्मीरी भाईयों का मुख्य काम है । दुकान पर भीड़ और पब्लिक के बीच लपालप उड़ता माल देख कर लग भी रहा था कि माल उम्दा है।
हमने हमारा कॉन्टेक्ट नम्बर भी उन कश्मीरी व्यापारियों को दे रखा था। ये समूह जब भी मुंबई में मेला लगाता है डिलीवर कर जाने के ऑफर के साथ एक बार बता ज़रूर देता है।लॉक डाऊन और कोविड में कहीं आने जाने की संभावना नहीं। इस साल तो किसी भी बात की गारंटी नहीं। तो उन मेवा व्यापारियों से हमें सभी जारी ऑफर फोन पर मिले। बच्चों की चुटुर पुटुर भूख, और हेल्दी स्नैकिंग ऑप्शन की तरह हमें ये वाले मिक्स ड्राई फ्रूट अच्छे लगते हैं, सो हमने ऑर्डर दे दिया। ऑर्डर बिना प्री पेमेंट लिए कश्मीर से मुम्बई भेजा गया, आने में कुल दो हफ़्ते से ऊपर ही लगे। कश्मीर से मुम्बई दो पैकेट ड्राई फ्रूट मिक्स इसी कार्टन डब्बे में कोरियर हो कर आया था जो आगे जाकर मेरे बच्चों अपने खिलौनों का बॉक्स बनाया।
ये बंधु सभी ग्राहकों के साथ इसी विश्वास पर टिक कर व्यापार करते हैं। पेमेंट बाद में आराम से गूगल पे से तब ही की गयी हब बच्चों ने ड्राय कीवी का आंनद ले लिया।डब्बे पर नाम लिखा है “SHABIR AH ” और नम्बर है – 9419038388, 7006303896। आपको भी अगर उम्दा, ईमानदार और मज़ेदार मेवा खाने मन हो रहा तो शबीर से मंगवाईये।
खुलने के बाद पैकेजिंग किस काम की, पर बच्चों ने मज़बूत डब्बे को काम मे लगा लिया है , निर्जीव चीज़ से उनका ऐसा भावनात्मक जुड़ाव हो गया है कि अगर मैं इसे कचरा बोल कर फेंक दूँ तो मेरा बेटा बेहाल हो हो रोने लगे कि मेरा फेवरिट टॉय बॉक्स फेक दी मम्मा ।
आदमी की उम्र जैसे जैसे बढ़ती जाती है अतिरिक्त दिमाग के चक्कर में दिल छोटा होता जाता है और भावनाएं विलुप्त। जब तक बच्चे थे हर पल असाधारण था और सब लोग ज़रूरी। हम में से क़ई लोग जो देश के दूसरे हिस्सों में रहते हैं कश्मीरियों से साधारण तौर पर आए दिन जान पहचान या व्यापार आधारित संबन्ध रखते हैं, पता नहीं सियासत क्यों बीच में आ जाती है।