प्लेट टेकटोनिक्स द्वारा एकजुट एवं धर्म से विभाजित हम सबको को याद रखना चाहिए कि हम पृथ्वी पर एक धूल हैं।पृथ्वी ने अपने वर्तमान मानचित्र तक का सफर एक पैंजिया से शुरू किया था।परिवर्तन अनिवार्य है।परिवर्तन स्थायी है।पृथ्वी चिर परिवर्तनशील है।
प्रकृति की शक्तियों को कोई फर्क नहीं पड़ता की धरती पर जीवन की क्या गतिविधियां जारी हैं। प्रकृति की शक्तियों को तो मतलब ही नहीं कि “हे मनुष्य,चूँकि आप विकसित हुए हैं, इतना बड़ा परिवार हो गया है आपका , महान भवन अट्टालिकाएं हो गयीं आपकी, तो अब मुझे दयालु होकर रहना चाहिए। ” हम प्रार्थना भर कर सकते हैं। अहंकार मूर्खता है।
प्रकृति हमें उसी तरह कुचलती जा रही है जिस तरह से वह अपने पहाड़ों को कुचलती है, नदियों की धाराएं बदलती है, समुद्र सुखा देती है, नए भूमण्डल बना देती है। हम भी इन्हीं में से एक हैं। प्रकृति का एक निर्जीव जीव।
Pragya Mishra