मुझे सोनम वांगचुक की बातें एक दम सही लग रही हैं, श्रीलंका और पाकिस्तान चीन के कर्ज के बोझ तले हैं। एक एक भारतीय अगर इज़राइल के नागरिकों की तरह सिपाही की तरह नहीं सोचेगा तो जल्द ही हम पर चीन का दब दबा बढ़ेगा हमारे पड़ोसी देशों के स्वर और बदलेंगे। यह विस्तार वादी नीति चीनी सरकार की है । आपने और हमने देखा है कि चीन में मानवाधिकार न के बराबर है । वहाँ से खिलौना सब आता है या कपड़ा भी आता है सब “ब्लड डायमंड” ही है। अर्थात दुबर्ल जनता के खून से अर्जित। आह और आंसुओं से सना हुआ।
जिसके दम पर चीन फलफूल रहा है।
हमारे प्यारे से देश मे नेहरू जी के समय की स्थापित बुद्धिमान विदेश नीति की वजह से हमको ख़ूबसूरत स्वतंत्रता मिली थी हमने उसे जिया है, भरपूर ।
अब यह हमारे बच्चों को मिले उसके लिए ज़रूरी है हम नागरिकों का जगरूरक होना। इस समय केवल सरकार का मुँह ताक कर बैठे रहना मूर्खता है। बात तो सही है , सादगी पूर्ण जीवन, बचत ज़रूरी है अब, कितनी गरीबी बढ़ रही।
जापान के जीने का तरीका सीखने योग्य है।
चीन ने बहुत चालाकी से दुनिया के बहुत सारे देशों को अपना आर्थिक गुलाम बना लिया है, यह आप एक फेमस अरबी यू ट्यूबर की one minute video में देख सकते हैं।
यह सब चिंता जनक है , देश की सरकार गरीबी बेरोजगारी भी नहीं सम्भाल पा रही है, राज्य सरकारों से ऐसे बात किया जा रहा है जैसे राज्य अलग अलग देश हो गए और उनको केंद्र से गिड़गिड़ा कर ही हेल्प मिलेगी। यह सब घोर पतन है।
वांचूक की बात नहीं मानना है मत मानिए लेकिन सचमें चीन पर निर्भरता तो समाप्त होनी ही चाहिए इसपर विचार करना तो शुरू कर ही दीजिये। साथ साथ ये भी सोचिये की सोनम वांगचुक कितना होनहार आदमी है अगर वो कोई मुहिम चलाएगा तो उसके पीछे उसकी बरसों की स्टडी है।
दुनिया में आर्थिक और तकनीकी ताकत का असंतुलन होगा तो भी हम तृतीय विश्व युद्ध की तरफ बढ़ेंगे । भारत को इस असंतुलन को रोकना होगा।
भारत का हिस्सा हड़पा गया है 62 में और हम आज तक बचाव की नीति में शांतिपूर्ण हैं। लेकिन व्यापार के आगे और ज़्यादा दिन उसूल को तिलांजलि नहीं दे सकते।
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरियषि ।
हमारा देश भारत जो सभी धर्मों का स्वत्रंत देश है इसके हाथ मे या कहिये इसके बौद्धिक संवेदनशील नागरिकों के हाथ मे ज़िम्मेदारी आयी है। ये ज़िम्मेदारी है दुनिया को संतुलन से बचाने की । दांव पेंच की समझ वाले भोले भाले भारतीयों तक थोड़े पेशेंस से बात पहुंचाने की।
क्षमा शोभति उस भुजंग को जिसके पास गरल हो
उसको क्या जो दंतहीन विष रहित विनीत सरल हो
हम अपने बच्चों को आज से इसी क्षण से लॉ , सायबर लॉ, इनटरनेशनल लॉ, राजनीति शास्त्र , अर्थशास्त्र , एनवीरोंमेंटल साइंस, भूगोल, शोध आधारित विज्ञान में ज़्यादा से ज़्यादा आगे करें। फर्जी केमिस्ट्री फिजिक्स के पप्रेक्टिकल कर के पास होने के दिन लद गए। IT अथवा मल्टीनेशल या बीपीओ इंडस्ट्री का हैंडसम टेक होम सेलरी लाने वाला गुलाम बेटा बेटी मत बनाएं।
आराम के दिन वाला भारत खत्म हो गया है। 1980 -2000 तक में जन्मी जनरेशन ने ऐश कर लिया लगभग। लेकिन हमारे बच्च्चों के लिये आगे ज़िन्दगी बड़ी कठिन होगी ।
सादा जीवन उच्च विचार कर के चीन से निर्भरता खत्म करने को महज मीमर बन कर मत मटियाईये। चीन का बहिष्कार करना शुरू कीजिए। सरकार वो ही करेगी जो जनता चाहेगी।
भारत खुद रिफार्म के दरवाजे पर है, हमारे प्रधान मंत्री अतीत में जी रहे हैं, बस चुनाव प्रचार करते है, हमारे गृहमन्त्री “आत्मनिभर” का उच्चारण नहीं कर सकते, हमारी फाइनेंस मिनिस्टर जोकर के जैसे कुछ भी आंकड़े बोलती है। देश मे हिन्दू मुस्लिम दलित विवाद को बढ़ावा देकर राजनीतिक रोटी सेकी जा रही है। जबकी हमें एजुकेशन रिफॉर्म, मेडिकल फैसिलिटी रिफॉर्म की कितनी ज़रूरत है। ज़रूरी है कि अंधे धर्म की पाठशाला चलाने की बजाए अविष्कार की प्रवृत्ति बने हमारे बच्चों में ताकी वे केवल नौकरी करने की पढ़ाई भर न पढ़ें नया सोचें।
इतनी हाहाकारी अव्यवस्था में भारत – चीन युद्ध हमको कहाँ पटक देगा कितना पीछे ले जाएगा ये सोचना है जितना बन पड़े देश हित के लिए काम आना है नहीं तो बच्चे हमारे चाइनीज़ कॉलोनी में जी रहे होंगे।
यह समय है देश भक्त बनने का। पढ़ने का जागरूक रहने का।