संसार तेरी कर्मभूमि है और तू अपने कर्मों के मापदंड से मापा जाएगा। निष्काम कर्म ही तेरा कर्म है। अपने से मुक्त होकर समाज के कल्याण के लिए कर्म कर। यदि समाज सुखी नहीं तो व्यक्ति भी सुखी नहीं। यदि वृक्ष कट जाएंगे तो तुझे भी फल नहीं मिलेगा। क्योंकि छाया और फल देना वृक्ष का कर्म है।

ज्ञान की नौका में पाप की नदी पार कर। ज्ञान अग्नि है जिससे मन शुद्ध होता है। ज्ञान योगी बन। ज्ञान की चरम सीमा कर्म सन्यास है। कर्म योग कर्म सन्यास से श्रेष्ठ है। कर्म-त्याग , निहित स्वार्थ से लिप्त है और जब तक मनुष्य कर्म-योगी नहीं बनता वह कर्म-सन्यास नहीं पा सकता। कर्म-सन्यास अथवा चरम ज्ञान का मार्ग कर्म-योग से है।

कर्म योगी उस कमल की तरह है जो जल में रहकर भी जल से अलग होता है। नौ द्वारों वाला शरीर रूपी घर में निष्काम कर्म करती कर्म-योगी आत्मा सुख पाती है। नश्वर जीवन को अर्थपूर्ण बनाओ क्योंकि यही ज्ञान का मार्ग है।

संशय,द्वेष,आकांक्षा पर विजय पाओ। मनुष्य स्वयं ही अपना मित्र भी है और शत्रु भी जब वह जितेंद्रिय हो जाता है तब वह अपना मित्र हो जाता है और अगर वह आकांक्षाओं में लिप्त खुद को नष्ट कर ले तो वह अपना ही शत्रु हो जाता है।

जीवन संतुलन का नाम है। कर्म योगी वही है जिसके जीवन में संतुलन है।ना अधिक खाने वाले को, न कम खाने वाले को। न अधिक सोने वाले को न कम सोने वाले को सफलता दोनों ही स्थिति में नहीं मिलती। इसलिए यह आवश्यक है कि एक सफल जीवन के लिए जीवन में संतुलन हो।

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