Agile footprint के दौर में अपने आप को थोड़ा-थोड़ा और निरन्तर प्रस्तुत करना होता है , इसलिए हम कभी ब्लॉग लिखते हैं, कभी फेसबुक पर कविता, कभी योरकोट पर क्षणिकाएँ, तो कभी कुकू पर पॉडकास्ट।
जिसके टैलेंट में साधना का बैकअप है वे हिट होंगे, और प्रयासरत रहना साधना में रहना है। इसमें ईमानदारी से लिखना एक ज़रूरी मील का पत्थर है लेकिन ये भी है कि मसाला नहीं होगा तो मैगी स्वादिष्ट नहीं लगेगी।
योरकोट पर मेरी मम्मी सरोज स्मृति को याद करते हुए मैंने यूँ ही क्षणिकाएँ लिखी थीं, रात को अक्सर सोने से पहले उन्हें एक सिरे से पढ़ना अच्छा लगता था, लेकिन मोबाइल सोते हुए बच्चों के बगल में रखना ठीक बात नहीं है और अपने भी शरीर से इतना लगा के नहीं रखना चाहिए । इसके लिए योरकोट ने कहा की इनको छपवा लो।
ऐसे में अपने अड़तालीस कोट्स की पूरी किताब के साथ थोड़ा थोड़ा प्रस्तुत हो रहीं हूँ । माध्यम है योरकोट। ये सिरहाने रख के पढ़ने के लिये। आप भी पढ़ियेगा , माँएं जो देह सहित बेटियों के पास नहीं होती वो आजीवन उनके विचारों में घर कर जाती हैं।
एक बेटी को उसकी माँ की ज़रूरत आजीवन होती है कयोंकि कोई पुरूष न पिता वैसे गले लगा कर जी हल्का कर पाएंगे कभी जैसे गले लगाती है माँ।
किताबें सिलसिलेवार प्रकाशन से छप कर आनी चाहिए , आयेंगी भी ।
लेकिन गले लगा कर एक ऐल्बम रखनी हो तो इसमें देर कैसी , उस समय मेरे पास कैमरा नहीं था आज कलम तो है। यही सही।
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