प्रचलन से इतर अनुभूति के शब्दों में क्या लिखूँ?
तुम्हारी याद में मम्मी लिखूँ या माँ लिखूँ ?
रीमा का बेटा उसे माँ कहता है
सुनने में बड़ा अच्छा लगता है
मेरे बच्चे लिपटेंगे बोलकर मम्मी-मम्मी
यह मेरा सच है ये मुझे सुख देता है।
अपने आप में पूरे ब्रह्मांड की ऊर्जा का स्त्रोत है ये एक शब्द “माँ।
हालाँकि माँ शब्द चलन, संस्कृति औऱ भाषागत परिवर्तनों के साथ मम्मी , मम्मा, Mom में परिवर्तित हुआ फिर भी इसके मूल में जो प्रेम है , सत्कार है उसके बराबर केवल देश भक्ति की संवेदना ही खड़ी हो पाती है और कुछ भी नहीं।
सदियों से साहित्य और कला पर इस एक शब्द की पकड़ इतनी मजबूत रही है कि महान साहित्यकारों ने काव्य की विभिन्न शैलियों में कविताएँ लिखीं, कहानियाँ लिखीं, माँ शब्द को बेहतरीन चित्रों में ढाला गया, फिल्मों और नाट्य में भी एक माँ के जीवन की विभिन्न अवस्थाओं और वेदनाओं को फिल्माया जाता रहा है।
यह माताओं को यथोचित सत्कार है कि स्त्री हो या पुरूष अपनी जन्म दात्री या पालन कर्त्री माता के प्रति कृतज्ञ बने रहने की यथासम्भव चेष्टा करते हैं।
आधुनिक शहरी जीवन की व्यस्तता में समीकरण बदले ज़रूर हैं लेकिन इन बदलावों ने माँ के स्वरूप को भी बदला है।
जहाँ वो नहीं बदली उसने हाथ से छूटते समय का एक बारीक धागा महसूस किया जो उसकी हथेलियों को काटता निकल गया। नए भाग्य की रेखाएं बनाते माँ होने के हुनर को नए ढर्रों में ढालते।
ये एक तरह का संक्रमण काल है जिसमें आज एक माँ को नई संभावनाओं के मध्य बिना किसी अनुभव खरा उतरना पड़ता है।
आधुनिक शिक्षा पद्धति में पली बढ़ी स्मार्ट होम मेकर माँ।
मॉडर्न वर्किंग वुमन माँ, बच्चे के सपनो के साथ खड़ी साहसी माँ, पब्लिक जगहों पर स्तन पान से नहीं घबराने वाली माँ। घर, बाहर ,वित्तीय मसले,अपने शौक, बच्चे के सन्तुलित आहार का ख्याल रखती एकल माँ।
इन सब के बीच जिस चलन का सब खुशी खुशी स्वागत कर रहे हैं वो है अपने पोषण और मानसिक सुख का पूरा पूरा ख्याल रखती खुशहाल माँ। ऐसी माताएं देश को सन्तुलित युवा पीढ़ी और सम्पूर्ण समाजिक सम्पन्नता देने में योगदान दे रहीं हैं। जिस घर मे औरतें खुश रहती हैं, सम्पन्नता रहती है, बच्चे बिना मतलब हर समय रोते नहीं रहते। औरत का खुश रहना उसकी खुद की सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी है।
माँ होना एक स्कूल बनने जैसा है एक डिसिप्लिन अपनाने जैसा है जिसको जीते हुए माँ और बच्चा दोनो बड़े होते हैं।
मानसिक जड़ता, पुरानी मान्यता , अवैज्ञानिक विचारधारा को सबसे पहले अपने बच्चों के प्रेम में तोड़ने की हिम्मत एक माँ के पास ही होती है क्योंकि उसने गर्भ में प्रकृति की सबसे बड़ी शक्ति को धारण कर मृत्यु को पराजित किया होता है।
एक बार की बात है एक मध्यम वर्गीय परिवार में एक नौजवान लड़का था। पढ़ने में तेज़ और स्वभाव से दूसरों के प्रति शालीन। लेकिन महा-आलसी , खुद की कम्प्यूटर टेबल कभी न साफ करता, खाना जहाँ खाता वहीं प्लेट छोड़ देता, किताबें कभी न ठीक करता और न ही कभी अपने कपड़े धोता।
उसकी माँ किसी भी ग़लती का एहसास उसे कराती नहीं कराती। बेटे के सारे काम समय से दुरुस्त कर के दे देती, लड़के को लगने लगा माँ हैं उनका काम है, उन्हें तो ये करना ही है। लेकिन इस तरह खुद को घिस कर बेटे के लिये पूरे समय तत्पर रह कर वह ख़ुद के सौंदर्य का ख्याल रखने का रत्ती भर न समय निकालती । फोन पर दुनिया भर का दु:ख परिवार में घन्टों बतिया लेतीं लेकिन अपने आप को संवार कर सहेज कर रखना उन्हें स्वार्थी औऱ निर्लज्ज होना लगता। बिना आयरन के बरसों की घिसी चली आ रही साड़ी या सलवार सूट पहन कर अपने ऊपर सबसे कम खर्च करते हुए बेटे को सब नया नया दिलाने में ताल ठोकते रहने से उन्हें खुद के बहुत संस्कारी होने का गुमान होता था।
एक दिन की बात है, किसी परिवारिक आयोजन में लड़के की माताजी भी तैयार हुईं। लड़के ने रोक टोक की ये सब तुम क्यों कर रही हो इतना क्या मॉडर्न होने का शौक लगा है तुमको जिसपर अच्छा लगे उसे ही करना चाहिए। हँस कर दाँत निपोर कर बुद्धिमान।लड़के की।माँ टाल गयी।
फिर कुछ दिन बाद पुनः एक आयोजन में सभी तस्वीरें ले रहे थे, उनके बेटे ने फिर तंज कसा की मम्मी तुम कोशिश मत करो तुम्हारी तस्वीरें अच्छी नहीं आती।
तस्वीरें आयीं , अच्छी ही आयीं, उस रोज़घर में फिर लोग बाग जुटे थे, लड़का माँ के प्रति कुंठा ग्रस्त था उसने अपनी माँ को ज़ोर से हँसते कह दिया तुम कैसी भी नहीं दिख रही,मेकअप की खिल्ली उड़ा दी। सबने बात आई गयी कर दी और माँ ने भी पूरियाँ तलने पर बल दिया।
उस दिन पूरे परिवार के सामने बेटे द्वारा किया मज़ाक लड़के के पिता को नहीं जँचा उन्होंने बिना देर किए बड़ी सही बात रख दी। औरतें घर की नींव होतीं हैं वे कई बार दिखाई नहीं देती लेकिन घर उसी पर खड़ा होता है।
यह बेहद गहरी बात थी।।उसके बात सारा घर वाह वाह कर बात के मज़े में था और जैसा की परिवारों में होता आया है किसी बात को तूल नहीं दी गयी सब पकवान खाने में व्यस्त थे।
लेकिन लड़के को सीख मिल गयी थी। समझदार के लिए इशारा काफी है। माता जी ने भी अपने अति वात्सल्य को थोड़ा समझदारी से दिशा निर्देशित करते हुए धीरे धीरे बेटे अपेक्षा रखनी शुरू की।
लाट साहब थोड़ा अपने काम खुद करो ।
आज कल बेटियाँ भी नाज़ों से पलती हैं
जैसे तुम मम्मी के राजा बेटा हो न
वैसे वो भी पापा की परी होकर पलती हैं।
पेश है एक मेरी एक कविता।
दुनिया की पहली खूबसूरत औरत माँ होती है
स्त्री व्यवहार का पहला अनुभव माँ होती है
हर डर या चोट में ज़बान पे आये माँ होती है,
डाँटने के क्षण भर बाद ही प्यार जता देती है
सारा अस्तित्व अपना गौण रख कर भी
जो घर भर में बसती है वो माँ होती है।इतनी ज़िम्मेदारियों के बोझ तले
एक माँ को क्या करना चाहिए?
तमाम मानसिक उद्वेलनों से बचे रहें के लिए
एक माँ को क्या करना चाहिए?उसे नृत्य करना चाहिए
नित्य योग करना चाहिए
झूमते हाथ हवा में
उठे नेत्र गगन में
रवाँ हो जाना चाहिए
कमरे के एक छोर से दूसरे
झूम झूम गीत गाना चाहिए ।मम्मी तुम सलीके की सलवटें तोड़ कर अच्छा करती हो
मरीन ड्राइव पर घन्टों समय व्यतीत कर अच्छा करती हो
उसी ऐड्रेस पर खाना ऑर्डर कर लो आज साथ कुछ दोस्तों के बाहर घूम आओ आज
कुछ न बोलो सारी शाम
चुप चाप बैठो सारी शाम
लहरों से बातें करो आजजो न बन पड़ा जीवन में
कह दो अपनी किसी कविता से
या कह दो सखियों से।
सुना है केवल औरतें औरतों को समझती है
एक औरत ही औरत का मन पढ़ सकती हैमेरी फिक्र में मुझपर कितना चिल्लाती हो
किशोरावस्था में नाहक ही मुझको दूर किये जाती हो तुम समय पर नाश्ता क्योँ नहीं करती होघर भर की सारी बातों में हामी क्यों भरना
जो नहीं पसन्द उसपर मतभेद व्यक्त करो ना
मैं देखती हूँ तुम्हे और सीखती हूँ तुमसे ही
आगे आकर सम्भालो कमान मेरा साहस बनो ना
बनाओ नए कीर्तिमान माँ होने के गौरव का
एक औरत के रूप में दिखाओ जीकर
वास्तव में परम् सुख है केवल अपनी खुशी के लिए
औरत का माँ होना ।
वास्तव में परम् सुख है केवल अपनी खुशी के लिए
औरत का माँ होना ।