हिंदी साहित्य के इतिहास में भक्तिकाल को 1350 ई. से 1650 ई. के मध्य माना गया है। यह हिंदी साहित्य का स्वर्ण युग कहलाता है।
इसमें तुलसी सूर जायसी तथा कबीर जैसे महान कवियों ने अपनी रचनाओं से समाज को नई दिशा प्रदान की।
गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित रामचरितमानस, भक्ति काल में सगुण काव्यधारा का सबसे प्रसिद्ध प्रबंध काव्य ग्रंथ है। गोस्वामी तुलसीदास समग्र मानवता के कवि माने जाते हैं। रामचरित मानस में तुलसीदास जी ने भारतीय संस्कृति का एक आदर्श स्वरूप प्रस्तुत किया है। तुलसीदास जी ने अपनी उच्चतम स्तर की प्रतिभा दर्शायी है और महाकवि एवं लोकनायक होने का प्रमाण दिया है। वे समग्र मानवता के कवि हैं।
हिंदी साहित्य में रामचरितमानस जैसा लोकप्रिय और श्रेष्ठ महाकाव्य दूसरा कोई नहीं है।मानस सर्वकालिक प्रासंगिक महाकाव्य है। यह रामभक्ति काव्यधारा में रचित भारतीय संस्कृति का एक आदर्श स्वरूप है।
तुलसीदास, भक्ति को किसी साम्प्रदायिक भाव में बंधे बिना सरल आचरण का पर्याय बताते हैं, तुलसी की दृष्टि से भक्ति मानव जीवन का सार है और विषयों का भोग मात्र इस जीवन का उद्देश्य नहीं होना चाहिए।
मनसा वाचा कर्मणा
काव्यशास्त्र और मानदंड की दृष्टि से रामचरितमानस ग्रंथ में निम्नलिखित चारों विशेषताएं हैं –
- उदात्त चरित्र निर्माण ग्रंथ
- धर्मग्रंथ
- संस्कारग्रंथ
- स्मृतिग्रंथ
मानस ऐसा धार्मिक ग्रंथ है जिसे पर्णकुटी से लेकर महलों तक पूज्य ग्रंथ की तरह नियमित पढ़ा जाता है।मंदिरों में , घरों में 24 घंटे का पाठ रखा जाता है।
मानस में प्रतिदिन जीवन के लिए सुक्तियाँ मिलती हैं। मनोहारी सार्वभौम दर्शन मिलता है।
रामचरित मानस विश्व साहित्य के प्रसिद्ध साहित्यिक रचनाओं में माना जाता है। मानस प्रबंध काव्य में मानव मूल्य के विकास का प्रयास , शील और सौंदर्य का संगम मिलता है।
अनेक पुराणों, वेदों, शास्त्रों के आधार पर मानस स्मृतिग्रंथ की रचना हुई है।
यद्दपि तुलसीदास कहते हैं कि मानस की रचना उन्होंने “स्वान्तः सुखाय” अर्थात केवल अपने अंत: सुख के लिए की वह ऐसा न रह के सर्व सुखाय में परिवर्तित हो गया।
मानस में तुलसीदस का मानना है , की मनुष्य जन्म बहुत दुर्लभ है इसलिए इसे व्यर्थ के संचय में नहीं व्यतीत करना चाहिए। वे कहते हैं:
“सब तज हरि भज”
मानस का संदेश विश्वरूप से आत्मरूप हो जाता है और आत्मकल्याण से विश्वकल्याण में परिणत हो जाता है।
जैसे हिमालय स्थित मानसरोवर की जाहनवी, मंदाकिनी, भागीरथी अलकनंदा मिलकर गंगा को जन्म देती है और चराचर को पोषित करती हैं, उसी प्रकार वेद, पुराण, दर्शन और धर्म मानस को जन्म देते हैं।
मानस मनुष्य मन की संवेदना और अनुभूतियों का समृद्ध विश्वकोश है।
यह मुख्य रूप से संवाद के रूप में चार श्रोता और चार वक्ताओं में विभाजित है।
शिव पार्वती संवाद – शैव और शाक्त जिज्ञासा समाधान
काक भुशूंडि और गरुड़ संवाद – भक्त और वैष्णव का संवाद
याज्ञवल्क्य और भारद्वाज संवाद – ऋषि -मुनि के मध्य का संवाद
कवि तुलसीदास और पाठक का संवाद – सार्वभौम संवाद
यह रूपक सम्पन्न उल्लेख चार मनोहारी घाट की कल्पना के जैसे किया गया है ।
सुभग नगर घाट मनोहर चारि
मिश्र बंधु के मुताबिक
चार मनोहर घाट की कल्पना इस प्रकार समझी जा सकती है’:
- ज्ञान घाट
- कर्म घाट
- उपासना घाट
- दैन्य घाट
ज्ञान, कर्म, योग, भक्ति ईश्वर को पाने के मार्ग हैं।
- शिव -ज्ञान का उपदेश देते हैं।
- याज्ञवल्क्य – कर्म का उपदेश देते हैं ।
- काक भुशूंडि- योग का उपदेश देते हैं।
- तुलसी -पाठक को ज्ञान कर्म योग से समन्वित भक्ति से रूबरू करते हैं। दिव्य, शील या चरित्र का पाठ देते हैं।
ज्ञान, कर्म, योग से समन्वित भक्ति ही समग्र जीवन का दर्शन हो सकती है
वैचारिक स्तर पर:
- ज्ञान रहित भक्ति- कोरी भावुकता है ।
- योग रहित भक्ति- सार रहित विवशता है।
- कर्म रहित भक्ति – परोपजीवी निरीहता है।
मानस ने सदाचार को बहुत महत्व दिया है। यह पूर्ण जीवन की अशेष गाथा है।
आचार: परमो धर्म:।
मानस आज और युग सापेक्ष हो चला है क्योंकि तुलसी दास की भक्ति मर्यादित भक्ति है जिसका सर्वथा ह्रास समाज मे सब तरफ व्याप्त है। मानस के मुताबिक भक्ति, मानव जीवन जीने का एक तरीका मात्र ही है उसे अंध विश्वास में नहीं परिणत करना चाहिए।
सन्दर्भ:
- MhD1 – तुलसी दास और चरितमानस Youtube Lectures on Consortium of Educational Communication,New Delhi—- लिंक यहां।
- हिंदी साहित्य का इतिहास – राम चंद्र शुक्ल
- इग्नोउ पाठ्यक्रम के आधार पर