मने देखिए लगभग फ्रोफेशनल ही लग रहे हैं न।

मुझे तस्वीरों में आ रहे टशन से अपने लिये एक गाना याद आता है।

“यूँ तो प्यार के नाम पर सब कुछ हुआ है, अब ये प्यार भी हो जाये इतनीं दुआ है”।

हमारी सोसायटी की कुछ लेडीज़ और लड़कियाँ बहुत अच्छा खेलीं, अंजली भाभी की बिटिया के हाथ मे तो जैसे चुम्बक लगा था और बॉल लोहे की हो, बायीं तरफ दूर बाउंड्री पर पूरे मैच में कम से कम दस कैच लिए उसने । नम्रता के बल्ले में उसकी पर्सनालिटी का सारा दम छक्के की तरह ही निकलता था तो दायीं छोर पर खड़ी फील्डर कितनी भी उछल कूद कर ले बॉल हाथ नहीं ही आनी थी। ।

धीरे धीरे विस्तार से एक महीने का अनुभव लिखा जाएगा।

फिलहाल तो मैंने सीखा बैट पकड़ना और अंडर आर्म बॉलिंग करना, और अब तो मुझे ये भी पता है कि “फूल टॉस” का अर्थ क्या होता है।

एक नई बात ये भी पता चली की मेरे पतिदेव बॉलिंग करते बड़े हैंडसम लगते हैं। मुझे न सिखाई मगर, न बैटिंग ही। वो तो भला हो मोनू का ऐसे करो वैसे करो बोल देता था।

मि लार्ड इसे साल के शुभारंभ की तरह दर्ज करें। कविता मार्केटिंग गुरु निकल कर आयीं उन्होंने आजीवन दर्शक दीर्घा में बैठने वाली महिलाओं को चटपट खेलने के लिए मना लिया। एक महीने तक पाँच टीमों ने प्रेक्टिस की ।

पूरी प्रेक्टिस के बदौलत एक चीज़ जो हमने मैच वाले दिन अच्छी कर ली वह थी फील्डिंग।

मेरी टीम का नाम था “स्वान” मने “हंस” , जलपा कैप्टन थी , उनके शहद बोल कान में सुखद लगे थे।

“प्रज्ञा आपकी फील्डिंग की वजह से डीवाज़ तीम के साथ मैच लम्बा चला।”

बाकी अब जबकी पता है क्रिकेट खेलते कैसे हैं दोनों बेटों को लेकर वीकेंड पर मैं भी एंगेज रख ही सकती हूँ।

#सुखांत

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