हिन्दू अपराइज़िंग एक अच्छी घटना है मुझे इस कालक्रम के इस परिवर्तन पर खुशी है। इससे मुझे कभी कोई शिकायत नहीं।

लेकिन एक कौम को रोकने से दूसरी कौम का उत्थान भी नहीं होता। हम अपने घरों में देखें ,यह भी ज़रूरी है।

हमारी बच्चियाँ, बच्चे खुद के कर्म कांड की छीछालेदर करते हैं, हम उन्हें महत्त्व नहीं बता पाए।

जिस तरह मुसलमान पांच समय नमाज़ी रह कर, कुरान पढ़ कर अपने धर्म की निशानियों को जी रहा है वो हिन्दुओं में डाइल्यूट हो गया खास कर सम्भ्रांत वर्ग में।

फिर हमने खुद ने एक आदमी को शुद्र बोल कर उससे जघन्य भारी गंदे कचरे ढोवाये उसकी पीढ़ियों तक को मानसिक बौनेपन में धकेला। हमने खुद अपने कारण से गौरवमयी सनातन संस्कृति धूमिल की है।

आज भी चाटुकारिता हमारे अंदर कूट कूट कर भरी है। भेदभाव हम छोड़ ही नहीं रहे। गीता , रामायण, महाभारत, रामचरित मानस न अब हम रोज़ पढ़ रहे , न बच्चों को कड़ाई से पढ़ा रहे।

इग्लिश पद्धति इंग्लिश पद्धति के चक्कर मे हिन्दूओं ने रहा सहा स्वाभिमान स्वयं गंवाया है। सभी भाई ये क्यों नहीं देखते। हम अपने आप से , आज से खुद से और अपने बच्चों को नियमित मंदिर , ध्यान, पूजा , पञ्चांग इत्यादि में प्रकांड कर शुरुआत क्यों नहीं करते?

प्रज्ञा

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