मज़बूत नाखून से आती है
तनाव में चबाते नहीं जब।
तह लगी अलमारी में दिखती है,
कपड़ा लिये उधड़ती नहीं जब।
दिखती है बेझिझक बच्चे में
घर भर में घूमता-फिरता है ,
गिरता है , सीखता है, लिखता है!
नहीं कोई सवालिया डर उसकी आँखों में अब।
बहुत और आनी बाकी है कामयाबी
जैसे समय पर उठना सोना
खाना थोड़ा-थोड़ा बार-बार
खुद पर मेहनत अब नहीं तो कब?
प्रज्ञा