“माय ग्रन्डपेरेंट्स” लिखकर जिस इतिहास की एक झलक अरुण अंकल ने आज फेसबुक पर साझा की है , मैंने उस इतिहास को देखा था। उनके पैर छुए थे। बैठ कर हौले हौले पैर दबाते हुए उनसे आज़ादी के समय की कहानियाँ सुनी थी। इनको चुपचाप माला जपते मुस्कराते और गर्दन हिला कर आशीर्वाद देते देखा था। ये दो लोग मेरी दादी माँ के जनक जननी है । इन्हें मैं बड़े दादा , बड़ी दादी कहती थी।

कितनी बातें उमड़ गयीं एक ही झटके में । सब लिख नहीं सकूंगी आज लेकिन एक बात जो मेरे साथ त्वचा की परत के जैसे रह गयी वो बताना चाहूँगी –

बड़ी दादी अक्सर कोई उक्ति बोलती थीं फिर चुप हो जाती थीं, उस उक्ति को बता कर उसका विस्तार करना उन्हें अनावश्यक बात जान पड़ती थी। अगर बच्चे में कैलिबर है तो बात का मर्म समझ जाएगा ऐसा उनका आजीवन का सोचना रहा होगा। वो अपनी सोचती मुद्रा के खजाने से अचानक एक नई ज्ञान पिटारी कब बाँट देंगी ये पाने वाले के सौभाग्य पर निर्भर करता था। आप उनसे ज्ञान मांग सकते नहीं थे और न हीं वो किसी को भी ज्ञान बाँटना उचित समझती थीं। तो हमारे परिवार में उनकी ज्ञान गंगा के मोती जिसको-जिसको भी मिले हैं वे सभी सौभाग्यशाली।

एक दिन की बात है उन्होंने मुझे पास बुलाया बैठाया मैं रोज़ की तरह अपनी रोंदू सूरत लेकर उनके पास गई उन्होंने मुझसे पूछा – ” की भेलौ , कथिल कनैत मूंह रखने रहै छि”

मैंने कुछ नहीं बोला । कक्षा सात-आठ में उस समय उतना कारण-विच्छेद करना नहीं आता था मुझे जितना अब करती रहती हूँ, खास कर अपने पति के साथ।

खैर , तो दादी माँ ने कोई जवाब न पाते हुए एक बात कही

“सुन एक टा गप्प कहै छियो, सुनभी?”

“हूँ।”

“कहबौ त मानभी?”

“जत लोक कानय ओत नय रही”

बस इतना कह कर वो चुप हो गयीं। मैंने सोचती सी ब्लैंक मुद्रा में उनकी तरफ देखा तो उन्होंने मेरी मुश्किल समझी और हिन्दी अनुवाद कर के बोलीं।

“जहाँ लोग रोए या रोते रहें वहाँ नहीं रहना चाहिए”

मैंने कहा, “अच्छा!”

फिर वो भी चुप हो गयीं और मैं किचन में रूह अफजा ब्रेड में डाल कर सैंडविच के जैसे खाने चली गयी।

उनकी इस उक्ति ने मुझे जीवन में बहुत सारे निर्णय लेने में मदद की। मेरे मित्र और मेरा परिवेश चयन करने में मदद की। मेरे हाव भाव में क्या बदलाव होना चाहिए इस बात की समझ बढ़ी।इस एक उक्ति के मायने बहुत हैं इसे मैं अब तक समझने के प्रयास में हूँ। ये उक्ति कठोर थी। निर्मम थी। एक प्रेम सिंचित सुंदर जीवन भी कई सारे कठोर निर्मम निर्णयों से तैयार होता है। जीवन के सबसे मृदुल पक्ष बड़ी कठोरता से सँवारे जाते हैं।

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