रूदाली
जब रूदाली पिक्चर आयी थी तब मैं स्कूल में थी। किससे किसका क्या रिश्ता था और कौन क्यों रोये इन सारी बातों की पकड़ कहानी डिकोड करने पर बढ़ी ।उस समय “ओह ओके अच्छा” , की समझदारी में गर्दन हिला दिया था।
रुदलियाँ दहाड़ मार कर रोती हैं। दहाड़ निकालने की ताकत स्वतः आती होगी , आनुवंशिकी है , ये पहले दक्षता, फिर अनुभव, फिर पेशा बनती है और फिर थोप दी जाती है कि तुम्हारा यही काम है ।
रोना सबके बस की बात नहीं। लोग चेहरे का टेक्सचर पोश्चर देखने के चक्कर मे स्टाइल मार कर सुबक कर रह जाते हैं ।घुटते हैं। कैंसर बन जाते हैं।
दहाड़ने के लिए फूटना आना चाहिये और फूटता वही है जिसने बरसों घुमड़ता लावा दबाव में बहलाये रखा था।
आज किसी ने प्यार से आईना दिखा दिया और बोला जो शक्ल अपनी लगे तो देखती रहना या मुँह फेर लेना।
मुहाने पर सारा दिन सर दर्द सा फिरता मूँह लिए चुप चाप बस पकड़ कर रूदाली घर को हो चली। उसने देखा है कि आँसू न निकल पाने की स्थिति में लोग खूब खाते हैं । ताबड़ तोड़ व्यस्त होकर, दिमाग भूल जाये की वो दुखी हुआ था । भूकम्प की दरारें प्लास्टर ऑफ पेरिस से पाट दी जाती हैं। नए सीज़न देखे जाते हैं, नाच गाना होता है, खूब ऊंची-ऊंची वॉल्यूम में ।
इन सबके बीच हम भुला रहे हैं ,झटक रहे हैं किसी को या कि उसके एहसास को, कंधों से, पेट की जकड़ से , अंतड़ियों से, गर्दन से , कलाइयों से , उंगली उंगली झिड़तके हुए , लेकिन वो और ही दबता जाता है घुमड़ते खाली शोर में । अहसास सबको है उसकी मौजूदगी का लेकिन भूत बनाकर।
तुमने सुना? किसी ने नहीं सुना।
ये रूदाली रोयी ही नहीं ।
उसको किसी के मरने पर लोगों के आड़े तिरछे रोते मूँह देख कर हँसी आती थी। उठा ली गयी, बहा दी गयी। धक्के खाये , दौड़ा दी गयी , दिल बैठा, कोर भीगी , सुबकन हो गयी, थोड़ी थी उँ ऊँ पर फीकी। फूटी ही नहीं वो अभागन, जैसे सच्चा प्यार मुश्किल ठीक वैसे रूदाली की दहाड़ मुश्किल।
बहुत कुछ कई बार होता है लेकिन उसके होने के तरीके अलग अलग कई हो सकते हैं जैसे प्यार में धोखा खा के रोना, अपना कुछ चोरी हो जाने पर रोना, परीक्षा में फेल होने पर रोना, किसी का दुख देख कर रोना। सभी रोने के प्रकार अलग तरह की भावना का उद्गार करते हैं ।
पर रुदलियाँ केवल एक भावना से रोती होंगी , श्राद्ध कर्म की भावना से। जन्म मरण के मृत्यु चक्र से निजात दिला देने की भावना से। स्वतः स्फूर्त, ये ऐसा-वैसा रोना-गाना नहीं होता। इसमें फ्लैशबैक होता है जो बॉयोस्कोप की तरह पट्टी पर चलता रहेगा, रूदाली उस जगह रोना शुरू करेगी जहाँ उसके आँसू रुक नहीं पाते हैं, जैसे रो कर तसल्ली दे रही हो :
एक सच तुम्हारा था,
एक सच उसका था
और दोनों झूठ नहीं थे।
#प्रज्ञा
30 नवम्बर 2018