कुछ सालों की ज़रूरत पर
गौर करते हुए,
मैंने नया चश्मा लिया है।
नो कोम्प्रोमाईज़ का चश्मा।
दुनिया हाई डेफिनिशन में दिख रही है।
माथे पे बल कम है।
किताबों से भरी पूरी एक दीवार है
पेपर बैक, हार्ड बाउंड
रंग बिरंगी , काँच के पल्लों में सजी धजी
सामने शीशम की मेज़
उसपे भूरी चमक
आराम कुर्सी
और बातें हो रही हैं
चाय के साथ
किताबों पर
ये मेरा इत्मिनान होगा।
#प्रज्ञा 1 जुलाई 2018
अच्छी कविता | शब्दों का प्रवाह बहुत सुन्दर है |
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बहुत आभार
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Good poem.
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Thanks 🙂
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