ये तस्वीर जैसे कई बार देखी है
सपनो में
आते जाते यहीं कहीं आना हुआ था
और आँख खुल जाती है
मन मसोस कर
वो कौन था
जिसे देखना न हुआ था।
कोई था जिसके साथ
अक्सर उस झील के किनारे
समय बिताये थे,
घंटों बातें हुईं थी
शिकवे जताये थे।
मैंने कहा मौसम कितना रूमानी हो रहा है।
कितने अनरोमांटिक से तुम चट बोले
अच्छा अब चप्पू तुम चलाओ
मेरा हाथ दर्द हो रहा है।
दोनों को जोरों की हँसी आयी
हमने नाव किनारे लगाई
पत्थरों पर बैठ कर
तारा मंडल ताका किये
तुमने बोला सप्तर्षि जानती हो
देखो कैसे चम्मच का आकार लिए
और वो?
तारोँ के गुच्छे हैं
कृतिका?
वहाँ वो मुस्तैद सिपाही सा कौन ?
ओरियन।
तारों से होते हुए तुम मुझे
आसमान की सैर पर ले गए
थोड़ी देर चाँद पर बैठे
लौटते सीढ़ियां कम पड़ गईं
हमने दो बादलों को रिश्वत दिए
वो ज़रा देर से बरसे
और धरती छत बन गयी।
इत्मिनान की थकान से
पलकें भारी हो कर पता नही
कब नींद को दे आईं
तुम्हारी बाहों के तकिए।
#प्रज्ञा
Picture Courtsey : Paras Soni
I like this poem.
My blog– roopkumar2012
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Thankyou
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