आदमी कितना भी बड़ा होता जाए वो प्रतिदिन सीखता है, आज मैंने माइक रोज़ेन की कविताओं का एक प्रोग्राम अटेंड किया उसमें समझा की कभी कभी हम प्यार को ट्रांजेक्शन बना देते हैं, जैसे कि जब तक सामने वाला प्यार दे नहीं तब तक वो मिला नहीं।

ये एक गलत सोच है जिसमें सुधार होना चाहिए, और लगा मुझे कि इस बार मुझमें सुधार होना चाहिए , तो उन सारे शब्दों के बाणों के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ जिनसे तुम्हारा साधारण मन आहत हो गया , जैसे कल वाला मुँह “आधा दर्जन किलो” वगैरह जैसे कुछ बोल गया।

वैसे ये पता होता है, पर अक्सर भूल जातें हैं की प्रेम तो निरन्तर है और हर समय होता रहता है।

ईद मुबारक!

सस्नेह,
प्रज्ञा
मुंबई
16 जून 2018

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