कैसी हो प्रज्ञा?
कौन?
मैं बोल रहा हूँ।
दिखाई क्यों नही देते?
अरे ! यहीं पड़ा नीचे देखो इधर।
किधर?
अच्छा बताओ तुम हो कहाँ पर?
ठाकुर विलेज में केक शॉप के बाहर ।
वहाँ कहाँ?
ये सड़क के किनारे..
गाड़ियों की पार्किंग…
और किस पर?
ये …
एक कटा हुआ तना
मै….
उस पर…
खड़ी हो?
“मैं उस बड़े पेड़ का अवशेष बोल रहा हूँ!”
देखो मेरे अगल बगल।
क्या दिख रहा है?
उफ्फ! फ्रूटी के गंदे कार्टन
गंदी बोतलें,
और तुम्हरा निर्जीव कटे
धड़ का कुचला हिस्सा
और कितना जड़।
मैं ऐसा नहीं था प्रज्ञा ,
देखो कटे तने की गोलाई
ये गवाह हैं …
असमय मुझको मृत्यू आयी।
किसने मारा तुमको पेड़?
थे कुछ ढेर।
फिर भी कोई नाम तो होगा?
पूछो उनका काम क्या होगा?
अत्याचार बताओ पेड़?
सुनो प्रज्ञा!
“मैं और मुझसे यहाँ कई
कैनोपी से लहाते थे”
“युवा जुगल कई जोड़े मुझसे टिक
बतियाते थे”
“तो क्या कोई लकड़हारा आया?”
“बेचारा जंगल से कब निकल पाया?”
“तो कौन आया, बोलो पेड़?”
एक नया प्रोजेक्ट आया!
नई सड़क आयी
मैं बाधक लगा
वो काट सकते नहीं थे
मेरी जड़ों को मिट्टी मिलने का धोखा देकर,
छोटे छोटे चतुर्भुजों में चुनवा दिया!
और सुंदर सीमेंट की कार्पेट
मेरे दरवाजे तक बिछाई गई।
पानी बरसातों में मेरे सामने से
नालों में बह जाने लगा,
जैसे वो खुद आंसू बन बह रहे हो
कह रहे हों
“दोस्त ढलान के साथ जाने को मजबूर हैं हम”
मैं बहुत ऊंचाई से सब देख रहा था
पर हवा में ठंडक पहुंचाने में व्यस्त
मैं अंतिम सांस तक लड़ता रहा।
एक दिन मेरे इलाज के बहाने डॉक्टर आये
मेरे लहलहाते तनों को
खच खच चला कर कतल दिया
मानों कीमोथेरेपी के हवाले किया हो
डेड सेल में तब्दील कर
“हार्मफुल फ़ॉर द पासरबाय”
उफ्फ ये तो हत्या हुई!
हम निर्जीव जीवन माने जाते हैं प्रज्ञा।
ऐसा क्यों कह रहे हो!
नहीं तो दीवार की ड्रिल मशीन मुझपर
और कील ठोक हमारे तन पर
पम्प्लेट नहीं टांगे जाते।
बड़ा दुखद है ये तो।
क्यूँ ऐसा कभी सोचा नहीं था?
या पेड़ की आत्मा भी भटकती होगी
किसी ने बोला नही था?
मनुष्य मरे मसान जाए
मरा पेड़ कौन गति पाये?
तुम्हारा तर्पण कैसे होगा?
ये जो बचे पेड़ हैं प्रज्ञा
इनकी रक्षा से मेरा तर्पण होगा
देखो सीमेंट इनके कन्ठ तक न जाए।
तुम्हारी सन्तानों को हमारी जरूरत होगी।
अलविदा!
#प्रज्ञा 19 अप्रैल 2018