कितना खोखला हो गया मन,

खड़े होने की जगह

खोदते खोदते,

मिट्टी से ऊपर उठना था,

उसके हिस्से की धूप लेली

इसके हिस्से का पानी

बहुत प्रचुरता से टिकाई

अमरबेल ने सदाबहार जवानी

इस हरियाली को शोहरत कहते हैं।

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