ऐसी मानसिक स्थिति को क्या कहते हैं
जिसमें करना क्या चाहिए ना समझ आये
वस्तुतः सुगठित समाज के संचालक
इस परिस्थिरती को कई तरह के नाम देंगे:

क्या बचपना है,
पगला गये हो,
अभी जिम्मेदारी की समझ नही है,
बस दिमागी फितूर है,
क्या हुआ है?
उफ्फ इसका कुछ नही हो सकता!
रहने दो दिमाग ठिकाने आ जायेगा!
क्या चाहिए ?
कहाँ जाना है ?
उम्र का दोष है!
आज कल के युवा, उफ्फ!
और पढ़ो किताब!
और न जाने क्या क्या।

फिल्मों की कल्पनाएं
किसी की आकांछा से आई होंगी
दूसरे ग्रह से आकर कोई
धरती पर भी हाथ पकड़ेगा।
ये जो तुम कहते रहते हो
मैं नहीं बोलूँगा
तुम समझ जाना
ये जिम्मेदारी वो ही ले लेगा।
की समान उठाया तो क्या सोचा
वापिस रखा तो क्या सोचा
जाएं या मुड़ जाएं,
चाहते हैं या सिर्फ डेकोरम है,
फ़िजूल है या कुछ सच होगा,
रोका क्यूँ नहीं
टोका क्यूँ नहीं
मुझे क्या पता
फिर किसे पता
कोई बात नहीं थी
नहीं! थी।
बहुत
कही नहीं गयी थी।
घूम के
फिर घूम के
घूम गए
करवट
बात वहीं पड़ी थी।
उठाना था
करनी थी चर्चा
पर हमने साहित्य नहीं पढ़ा
बस धरती गोल जान गए
और जिये जा रहे हैं
शून्य और एक के बीच
क्या कुछ चल रहा है
उसे देखने की मशीन महंगी है
या शायद यहाँ नहीं मिलती
मेरा महंगा बड़ा शहर
किसी के लिए है
और कहीं ढह गया
लीपा पोती की दीवार
सदियों की दीवार
नाक की दीवार
मुक्के से टूट रही थी
उम्र भर के किये कराए का
हिसाब माँगने वाले
अंदर से आते मुक्के।

A backdrop to an event is a situation that already exists and that influences the event.

#प्रज्ञा
1अप्रैल 2018

Advertisement